पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८३

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नहीं; किन्तु किन्तु! बड़े दिन तो खत्म हो चुके हैं। बड़े दिनों को छोड़ो, तो बम्बई चला जाऊँ। वास्तव में मैं कुछ समय के लिए अमृतसर को भूल जाना चाहता हूँ। यहाँ मुझे कुछ घबराहट सी हो रही है।"

अब्बास ने आश्चर्य-जनक दृष्टि से देखते हुए पूछा--"अमृतसर में श्रापको घबराहट हो रही है या डर लग रहा है? अमृतसर ने आपको कहाँ काट खाया है?"

इस पर सैय्यद के मन में आया कि अब्बास के सामने अपने मन का सारा हाल खोल कर कह दे; किन्तु न जाने क्या सोच कर वह चुप रह गया। वास्तव में वह चाहता था कि किसी को अपना दुःख सुनाए; परन्तु इसके साथ ही साथ वह यह भी नहीं चाहता था कि इसके दुःखों से कोई लाभ उठाए? यदि ऐसे होता कि दुःख सुना कर भी किसी को इसके दुःख का पता न चले, तो अवश्य ही अब्बास दुःख भरे हृदय के उद्गारों को उँडेल देता। उसे मालूम था कि यदि एक बार राजो के प्रेम की कहानी सुना दी, तो चिड़िया झट से उड़ जायेगी? जिसे वह पिंजरे में बन्द करके मारना चाहता है। इसलिए अब्बास को वह सब कुछ सुनाने के लिए झुका और पुनः सिग्रेट के डिब्बे से सिनेट निकाल कर जलाने की आवश्यकता जान पड़ी। अब्बास से भी उसकी यह बात छिपी न रह सकी कि उसका दोस्त कुछ कहना चाहता है; परन्तु वह कहने में असमर्थ सा हो रहा है। अतः उसकी परेशानी को पहिचान कर उसने कहा--"कहो, क्या कहना चाहते हो? आखिर तुम्हें अमृतसर से घबराहट क्यों आ रही है? बाहर क्यों जाना चाहते हो? कौन सी ऐसी बात है? पर बात, बात तो कोई भी नहीं होती? हम और तम फिजूल ही किसी बात में खासपन पैदा कर देते हैं; फिर भी कहता हूँ कि कहो क्या कहना चाहते हो?"

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हवा के घोड़े