पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८४

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सैय्यद ने सिग्रेट का एक करा लेते हुए अब्बास की ओर मुह से धुआँ फेंकते हुए कहा---"कुछ भी नहीं। कोई ऐसी खास बात भी नही; किन्तु मैं खुद नही जान सका हूँ कि मैं अमृतसर छोड़ना क्यों चाहता हूँ? वास्तव में कुछ समय से न जाने क्यों मेरे दिमाग़ की कल ढीली पड़ गई हैं। इसलिए चहल-पहल की दुनिया में जाना चाहता हूँ।"

चहल-पहल की दुनिया में जाना चाहते हो। अपने आप घर बनाना, यह तो कुछ कठिन नहीं। मैं आपको यहाँ एक वैसी ही दुनिया की स्थिति को पैदा कर के दिखा सकता हूँ! यदि हुक्म दो, तो करूँ। सच कहता हूँ कि रसीद, वहीद, प्राण सब के सब आपकी सेवा में हाज़िर हो जायेगे और फिर एक कोलाहल से परिपूर्ण वातावरण की जो हालत पैदा होगी, इतना शोर मचेगा कि कानो-कान की आवाज भी नहीं कोई सुन सकेगा? कहो क्या हुक्म है?"

अब्बास हँसने लगा। उसकी हँसी को देखकर सैय्यद का हृदय भीतर ही भीतर जिस चिंगारी के असर से सुलग रहा था, वह बाहर निकल पड़ा, सैय्यद तड़प उठा। वास्तव में अब्बास को मालूम नहीं था कि सैय्यद के हृदय में किस ढंग का तूफान उठ रहा है और वह किस प्रकार के खौफनाक रास्ते पर चल रहा है? यही कारण था कि वह इसकी हसी उड़ा रहा था। हँसते हुए अब्बास ने फिर पूछा---"कहो भाई क्या हुक्म है?"

इस पर सैय्यद का विवेक झुंझला उठा, वह व्याकुल होकर उठ खड़ा हा, बोला---"मैं फैसला कर चुका है कि सप्ताह में कहीं न कहीं जरूर चला जाऊँगा। मैं बहुत उदास हो गया हूँ। मैं अब यहाँ रहना नहीं चाहता। बस एक-दो महीने बाद रहकर, जब मेरा मन ठीक हो जायेगा, तब वापिस भी आ जाऊँगा। सोचो न कि कौनसा कोई ऐसा जरूरी काम यहाँ है, जो मेरे बिना पूरा नहीं हो सकता? तुम भी मेरे साथ चलो।"

हवा के घोड़े
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