पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८७

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था। इनके व्यवहार से, अतिथियों की तरह कुछ देर के लिए प्रत्येक के पास ठहरा और थोड़ी बहुत बात-चीत करने के पश्चात्त होटल में आ टिका।

पर इस होटल में भी उसका मन एक सप्ताह में ही उब गया था। वैसे किराया भी अधिक था। वह इन व्यक्तियों में रहना भी नही चाहता था, जो भारत में पैदा होकर योरपियन बनने की चेष्टा करते है। इसलिए उसने माल रोड पर एक छोटा सा कमरा देख लिया और किराया आदि पक्का करने के बाद उसमें जाने का निश्चय भी कर लिया।

अतः एक दिन होटल का 'बिल' आदि देकर वह ताँगे में अपना सामान रखवा रहा था कि समाने से उसने एक और तांगे में 'मिस फरिया' नर्स को आते देखा। पहले-पहल तो उसने सोचा कि कोई और होगी; क्योंकि एंगलो इडियन लड़कियों की मुखाकृति और रंग एक-सा ही होता है। जब फरिया उसकी ओर प्यासी हिरणी के समान हाव-भाव खोए हुए आगे बढ़ी, तब उसको विश्वास हुआ कि वास्तव में फरिया ही है। सहसा उसके दिमाग़ में सैकड़ों प्रश्न उठे और कहीं विलीन हो गए। लाहौर में बया करने आई है और कब आई है? क्या अकेली है? इस होटल में इसका कौन है, क्या इसी होटल में ठहरी है आदि आदि?"

अपने दिमाग़ में उठने वाले प्रश्नों को दबा कर सैय्यद ते होटल के नौकर की हथेली पर कुछ रुपए रखकर दबा दिये पार जल्दी से फरिया की ओर बढ़ा। आगे बढ़कर उसने प्रेम भरे शब्दों से उसका अभिवादन करते हुए कहा--"मिस फरिया, किसे मालूम था कि लाहौर में तुम से भेट होगी? तुम यहाँ कब आई हो?"

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हवा के घोड़े