पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८९

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की दो-एक बूँद उतर रही थी। उसका हृदय द्रवित हो उठा। उसने कहा--"नहीं नहीं! इसमें कप्ट की कोई बात नहीं? मैं यह सोच रहा हूँ कि तुम्हें वहाँ कप्ट होगा। इसलिए कि वहाँ सामान आदि कुछ भी नहीं है। केवल खाली कमरा है। अभी तक मेज़ और कुर्सियाँ भी कुछ नहीं ला सका। अच्छा, देखा जायेगा। चलो आओ।"

किराया आदि देकर और होटल के नौकरों को इनाम देते हुए दोनों ताँगे में मालरोड की ओर चल पड़े। रास्ते में कोई बात नहीं हुई; क्योंकि दोनों अपने-अपने विचार में मग्न थे और इतने में ताँगा उस मकान के आगे जाकर रुक गया; जिसकी दूसरी मंजिल पर उसने अपने लिये कमरा ले रखा था।

सामान आदि रखवा कर, जब सैय्यद ने फरिया की ओर देखा, तो वह लोहे की चारपाई पर बैठी अपने आँसू पोंछ रही थी। किवाड़ बन्द करके वह उसके पास आया और सहानुभूति प्रगट करते हुए पूछा---"मिस फरिया, क्या बात है! तुम्हारी आँख तो कभी रोने वाली नहीं थी?"

यह सुनकर फरिया ने ज़ोर-ज़ोर से सिसकना शुरू कर दिया, जिस से सैय्यद बहुत घबड़ा सा गया। इसको समझ में नहीं आता था कि इस लड़की को वह किम प्रकार दिलासा दे? यह पहली घटना थी कि नवयुवती उसके पास बैठी थी और रो रही थी। उसका हृदय कोमल था और शीघ्र ही बर्फ सा पसीज गया। फरिया के रोने का उसे अधिक दुःख हुआ घबड़ा कर कहा---"मिस फरिया! मुझे बताओ तो सही, सम्भवतः मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ।"

फरिया चारपाई से उठ खड़ी हुई। खिड़की खोल कर बाहर की ओर देखने लगी। फिर थोड़ी देर के पश्चात्त उसने कहा---"मैं इसीलिए

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हवा के घोड़े