पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९०

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तो आपके साथ पाई है। यदि आप से भेंट न होती, तो न जाने क्या होता और मैंने सच-मुच जहर खाकर खुदकशी कर ली होनी? मुझ पर जुल्म हुआ है, आपको याद होगा। साड़ी मिलने पर मैंने आपको धन्यवाद का पत्र लिखा था और आपसे प्रार्थना की थी कि आप मुझे अवश्य मिलें। अच्छा ही हुआ, आप न आए; क्योंकि मेरी पहली खुशी देख कर आपको बहत ताज्जुब होता। मेरे जीवन में क्रान्ति क्या आई, मानो जीवन में भूकम्प आया हो, जिसके आगमन के विषय में किसी को भी कुछ पता नहीं होता? मुझे मालूम नहीं था कि विज्ञान के युग में सुन्दर पुरुष झूठे और धोखेबाज हो सकते है। मुझे उससे प्रेम हो गया और उसने भी अपने प्रेम को दर्शाया। वह इतनी सुन्दर बातें करता था कि सुनकर मेरे हृदय में नाचने की और नाचते चले जाने की प्रबल इच्छा होती थी; किन्तु किन्तु! यह सब एक स्वप्न मात्र था। उसने मुझसे कहा कि मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ। उसने प्रेम के आवेश में एक अच्छा कीमती सूट भी भेंट किया, साथ मुझे एक अंगूठी भी बनवा कर दी और उसने अपने वचन के अनुसार शीघ्र ही विवाह करने की इच्छा प्रकट की। मेरे माता-पिता तो थे नहीं; जिनसे मैं आज्ञा लेती। अपनी इच्छा की मालकिन आप थी, इसलिए तैयार भी हो गई। उससे विवाह के लिए, वह साथ चलने के लिए। तब..तब! मुझसे विवाह करने के लिए वह मुझे लाहौर ले आया और हम दोनों उसी होटल में ठहरे; जहाँ आप भी कुछ दिन रहे हैं। सात आठ दिन तक मुझे उसने हरेक तरह से खुश रखा; किन्तु एक दिन प्रातः उठ कर मैंने क्या देखा कि उसका सामान आदि सब कुछ जा चुका है और उसका कहीं पता नहीं? मैंने खोजने की बहुत कोशिश की; परन्तु उसका कोई ठिकाना भी तो नहीं। मैंने कितनी बड़ी गलती की, आप विश्वास करें, मैं उसका पूरा नाम भी न पूछ सकी। खुदा जाने वह कौन था और कहाँ का रहने वाला था, क्या करता था? मेरी अक्ल

हवा के घोड़े
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