पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९१

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पर जैसे पत्थर पड़ गए थे। नर्सिंग-होम छोड़कर उसके साथ चली आई विवाह रचाने! मैं कितनी खुश थी। विवाह के पश्चात्त घर बनाने और सजाने के लिए मैंने मन ही मन में क्या-क्या नहीं सोचा था, पर अब मैं क्या करूँ? हस्पताल भी वापिस नहीं जा सकती हूँ। नर्से क्या कहेंगी और सिस्टर मेरा कितना मज़ाक उड़ायेगी? मैंने खुदकशी करनी चाही; मगर अब मैं खुदकशी करना भीनहीं चाहती। मुझे जीवित रहने की प्रबल इच्छा है। वह मुझ से विवाह न करता, तो मेरे साथ इसी प्रकार रहता, खुदा की कसम मैं खुश थी; किन्त वह कितना जुल्मी निकला? मैं यह नहीं कहती कि मैंने उस पर कोई उपकार किया है? यह तो मैं उसका उपकार मानती थी कि उसने मुझे एक नए संसार का रास्ता बताया और मुझे खुश करने के उपाय किये; किन्तु वह तो मुझे धोखा दे गया। उसने जुल्म किया। यह जुल्म नहीं तो और क्या है? होटल वाले मुझे सन्देह-भरी दृष्टि से देखते हैं। बैरे मुझे ऐसे देखते हैं, मानो में चिड़ियाघर का पक्षी हूँ। मैं अभी तक केवल इसलिए यहाँ ठहरी हूँ कि होटल वाले समझे कि कोई खास बात नहीं हुई; किन्तु ऐसा मालूम होता है कि इनको सब बातों का पता हैं? क्योंकि एक दिन बूढ़े वैरे ने मुझसे कहा--"मेम साहब! वह आपका साहब अब नहीं आयेगे, आप चली जायें।"

"मैंने धन्यवाद के जगह पर उसे गालियाँ दीं। क्या करूँ मैं चिड़-चिड़ी हो गई थी? अब मेरे हृदय में शान्ति आ गई है, आपको देख कर मुझे ऐसा लगता है कि जो कुछ हो चुका है उसका विचार मेरे मन से दूर हो जाए, मुझे दोस्त की आवश्यकता है; किन्तु..किन्तु यह मेरी दूसरी भूल होगी। यदि मैं आपको दोस्त समझूँ, क्या पता है आप मुझे पसन्द करें या न करें? हस्पताल में आप कुछ दिन रहे और आप ने मेरे साथ सदा ही अच्छा बर्ताव किया। इसलिए मैंने समझा कि आप मेरे दोस्त बन सकें। अच्छा, तो अब में जाती हूँ?"

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हवा के घोड़े