पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९२

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यह सुनकर न जाने सैय्यद को क्यों हँसी आ गई, बोला---"कह जारोगी, बैठ जाओ?"

उसने उसका हाथ पकड़ कर चारपाई पर बैठा लिया। जब वह बैठ गई, तो सैय्यद के शरीर को मानो काठ मार गया हो। उसे मालूम हुया कि उसने एक नवयुवती की कलाई को पकड़ कर बिठाया है, मानो वह जन्म-जन्मातर से एक दूसरे को जानते हों। कुछ क्षण पहले आँधी और बबूल के समान उठने वाले विचार को, मानो प्रेम-रूपी वर्या ने शान्त कर दिया हो? जो कुछ क्षण पहले उठ रहे थे। वह कुछ अधीर सा हो गया। सैय्यद की व्याकुलता का लाभ उठाते हुए फरिया फिर उठ खड़ी हुई और कहने लगी---"मेरा भी संसार में कोई है यह मुझे आज मालूम हुआ है? आज से कुछ दिन पहले मैं समझती थी कि सारा संसार ही मेरा है। यह संसार फिर कभी मेरा होगा? इस प्रश्न का उत्तर तो मैं नहीं दे सकती। पर मैं हस्पताल कभी वापिस न जाऊँगी। लाहौर में कुछ दिन बड़े आनन्द से व्यतीत किए। मेरे दुःख के दिन भी यहाँ ही बीतेंगे। मैं यहाँ किसी दुकान पर नौकरी कर लूँगी और और बाकी दिन भी इसी ढंग से बीत जायेंगे।" आहें भरती हुई वह बोली।

यह कह कर फरिया किवाड़ खोलने के लिये बढ़ी; परन्तु सैय्यद पर उसका जादू चल चुका था। इसलिये उसने उसे फिर रोक लिया, बोला--"मिस फरिया! जो कुछ तुमने कहा, इसका मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा खुदा के लिये अब चुप हो जाओ। मैं सोचता हूँ कि जिस इंसान ने तुम्हें धोखा दिया, वह बहुत ही नीच है। वैसे तुम्हें धोखा देना कोई बड़ी बात नहीं पर तुम इस योग्य नहीं हो कि तुम्हें धोखा दिया जाये, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है? जो कुछ हो चुका, उसे भुला देना ही ठीक है।" फिर एक दम नए ढंग से सैय्यद ने कहना शुरू

हवाके घोड़े
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