पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९५

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पाया और इसे ऐसा अनुभव हुआ कि वास्तव में उसकी सहायता करनी चाहिए। संसार की सभी स्त्रियों को चाहिए कि उसकी कमर पर उसी प्रकार प्यार में बंधा हुआ हाथ फेरें और उसे सान्त्वना दे। सहसा कुछ विचार आया और उसने फरिया का दूसरा हाथ जो खाली था, उठाकर अपने हाथ में ले लिया और धन्यवाद के ढंग से उसे दबाना शुरू कर दिया।

फरिया ने अपना हाथ उसके हाथ में रहने दिया और कहा--"यह अजीब बात है कि तुम एक औरत से प्यार करते हो और साथ ही प्यार करना भी नहीं चाहते। वहाँ से भाग आए हो और अब तुम किसी और लड़की से भी प्यार नहीं करना चाहते?"

सैय्यद ने उसका हाथ छोड़ते हुए कहा--"यहाँ तो चाहने या न चाहने का सवाल ही नहीं उठता। किसी भी औरत से प्यार करने के लिए मैं कितने साल जलता रहा, इसका तुम्हें कुछ भी पता नहीं और प्यार के बारे में जो कुछ भी मेरे दिमाग़ में है वह भी तुम नहीं जानती? जिस मुसीबत में में फँसा हुआ हूँ, उसका निर्माता भी मैं ही हूँ। उसकी प्रेम शक्ति में किसी बाहरी शक्ति ने नहीं फॅसाया? मैं खुद उस जाल में फँसा हूँ और अब खुद ही भाग आया हूँ। असल'...असल में मैं यह कहना चाहता था कि जब मेरा दिल एक औरत से भरा हुआ है, तो दूसरी औरत से कैसे प्यार कर सकता हूँ? जो भावुकता उसके प्रति मेरे दिल में पैदा हुई, तुम्हारे लिए या किसी अन्य के लिए नहीं हो सकती? मैं जब उसका विचार अपने दिमाग़ में लाता हूँ, तो खुद को बे-गुनाह और मजबूर पाता हूँ; किन्तु तुम से बात-चीत करते वक्त या तुम्हारे ख्याल दिमाग में लाकर अपने को मजबूर नहीं समझता। शायद तुम मेरा इशारा नहीं समझीं।" यह कहकर वह उठ खड़ा हुआ।

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हवा के घोड़े