फरिया से मुस्करा कर इसी की ओर देखा, फिर बोली---"दुनिया में कई तरह के आदमी रहते हैं। मैं बहुत कोशिश करती हूँ कि उसको जिसने मुझे अभी धोखा दिया है और उन लोगों को भी, जो मुझे पहले धोखा दे चुके हैं, जंगली आदमी समझूँ; किन्तु ऐसा करने में मैं हमेशा नाकामियाब रही। मैं उल्टा यह सोचती हूँ, शायद मैंने ही उन पर जुल्म किए हों। क्या पता मुझ से कोई ऐसी गलती हो गई हो, जिसकी वजह से उन्हें दुःख पहुँचा हो? कभी-कभी गुस्से में आकर उनको बुरा-भला कह उठती हूँ और बाद में पश्चात्ताप भी करती हूँ। तुम नर्स की जिन्दगी को तो अच्छी तरह नहीं जानते, हस्पताल में जो भी आता है, रोगी और दुःखी होता है। हर एक रोगी को हमारी सहानुभूति और देखभाल की जरूरत होती है। लोग मुझ से प्रेम-प्यार की बातें करते हैं और मैं समझती हूँ, उन्हें कोई खास बीमारी हैं, जिसकी दवाई मेरे पास है; क्योंकि मैं...मैं...मैं पागल हूँ...और तुम....।"
"मैं..मैं बहुत बड़ा पागल हूँ।" सैय्यद ने मुस्कराते हुए कहा।
फरिया मुस्कराई और अचानक उसने सैय्यद के अधरों को चूम लिया। कुछ देर के लिए प्यार की वजह से सिट्टी गुम हो गई और वह घबड़ा गया, बोला---"मिस फरिया! यह क्या!" फिर कुछ संभल कर कहा---"ओह! ओह! कुछ नहीं! वास्तव में मैं ऐसी चीज़ों का ख्वाइशमन्द नहीं हूँ।" कहकर वह उठ खड़ा हुआ। कृत्रिम हँसी हँसकर पुनः कहा---"मैं आपको इस अभिवादन के लिए धन्यवाद दे रहा हूँ।"
यह सुनकर फरिया बहुत खुश हुई, बोली---"धन्यवाद! धन्यवाद! तुम अभी बिल्कुल बच्चे हो। इधर आओ...और खुद आगे बढ़कर उसने उसको अपने हाथों में जकड़ते हुए, अधरों पर अधर जमा दिए।