पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/९८

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"मेरा ख्याल है कि ऐसी बातों के बारे में ख्याल ही नहीं करना चाहिए। आदमी औरत में क्या चाहता है या औरत आदमी में क्या चाहती है। दोनों मिलकर क्या चाहते हैं? यह चाहने की बात बहुत लम्बी है, जो कभी कम न होगी। आओ, कुछ और बातें करें। हाँ यह बताओ! सच तुम क्या करना चाहती हो?"

फरिया ज़ोर से हँसी, फिर अपनी ही रोक कर बोली---"भला चाहने के विचार की सीमाओं का भी कही अन्त है?"

सैय्यद भी हँस पड़ा। उसने उसकी हँसी में जैसे दाद दी हो। उसने कहा----"फिर भी कहो तो।"

फरिया बोली---"मैं बहुत दुःखी थी; लेकिन इन बातों ने सब दुःख दूर कर दिए है। वैसे तो में ज्यादा देर तक तड़प भी नही सकती; लेकिन जो बाते आपके और मेरे साथ हई है, वे इतनी अच्छी और इतने सुन्दर ढंग से हुई है कि मैं तीन चार दिन से जिस थकान को महसूस कर रही थी, वह अब सारी दूर हो गई है। मैं अब भविष्य के लिए ठंडे दिमाग़ से सोच सकूँगी।"

"क्या ख्याल हैं?" सैन्यद ने पूछा

"कोई विशेष ख्याल तो नहीं? हाँ, लेकिन अमृतसर वापिस न जाऊँगी; क्योंकि मुझे फिर डर रहेगा कि कहीं कोई आदमी कम्पनीबाग़ में न आ निकले और मेरी कमजोरियो से फायदा उठा कर चलता बने? मैं अब लाहौर में ही रहना चाहती हूँ। आप कब तक यहाँ रहेंगे?"

सैय्यद ने उतर दिया---"यह मैं नहीं कह सकता; लेकिन फिर भी ख्याल है, दो-ढाई महीने यहाँ रहूँगा। मैं खुद अमृतसर नहीं जाना चाहता।"

हवा के घोड़े
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