पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२१

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मोनी में एक में ही हैं। इसमें प्रतीत होता है कि | दिय नृसिंह जय पातु जाहि संचित सु सिद्धिचय । दोनों ग्रंश एक ही कवि के रचे हुए है। यांधु श्रयनि अबलय भयउ सुभ कर्म धर्ममय ॥ दोनों के कुछ कुछ उदाहरण दिए जाते हैं नृप मित्र साहि नंदन प्रयल गहिरवार गंभीर भुव । जिनमे माश, भाष और शैली की समानता का कुलदीप वीर बुंदेल घर सु अय सरूप अवतार हुय । गुत कुछ पता लग सकता है। गजित गैयर मत्त सुरथ सजित जिमि पारथ । गृतकीमुदी से राजबंश घर्णन:- वजत दुंदुभि घोर भूप तजत पुरुषारय ।। अति प्रशाद गुन सिंधु सूर काशी नरेश हुव । गम्बर गैयर हरन हारि नहिं रत्थ रस्सकिय । पातार धरि धीर धरनि मंडन प्रसिद्ध भुव ।। जव्यर धीर बुंदेल हाँक सुनि सरध रत्यकिय ।। विक्रम जिमि पृथराज मथन पारथ पृथु पेपिस्वय। हुन सिंह सरुप सरोज जहें तहें दक्षिण उद्विय गरद । दान धर्म प्रनिपालि दान ऋष कर्ण सुलेविनय ।। इष्ट्रिय अरि लुट्टिय नगर जुट्टिय चोइ फुट्टिय मरद५ मशु सादिमुथन गुंदेल घर चोरसिंह अवतार लिय। निज कुल भानु समान लनि नृपति सरुप सुजान । जय जय प्रबरन मडिय जगन, बहु विधि जाफी देखिये बढ़त दान दिन मान ॥६॥ सुजपनि विदिग्नि दिसि इह किय ॥२॥ | भिक्षुक पाये भौन के, सयन लहे मन काम | एप्रियपनि मिनिपाल उदिन उहाम प्रोज अनि । त्याहाँ नृप को सुजस सुनि आयो कयि मतिराम प्रगट पुटुमि पुरन भयो निझम अपार गनि ॥ ताहि वचन मन मानिके, कीन्हो हुकुम सुजान । ममर रद्र मय मंजि धीर विजय व्रत लीन्हें । अथ सस्थत रीति सी, भाया करी प्रमान 1॥ राज राज सम वित्त वितरि जम करण हिं दीन्हेउ॥ छंटसार संग्रह रच्यो, सकल ग्रंथ मति देखि । दुर गण मान युन्दन मोर वीरसिंह पंचम मुअन । घालक कविता सिद्धि को, मापा सरल चिशेपि [181 पर भगदमा दिपिनधिय लिय, श्री महराजधिराज वीर विरसिंह देव हुन। मुगनि दुमा दस्यिय दुधन ॥२॥ चन्द्र मान धरनीश धीर ताको प्रसिद्ध भुव । पर वीरनि कमनीय करिय दिन दान अमिन फरि। मित्र साहि निनको सुपुत्र विख्यात जगत सब । रहिम्मत हिंदुवान पेटि रविवय तुभुजन धरि । नातु पुत्र अवतंस अवनि पचम सरुप अथ ।। यमिमिगढ नगतिखिल मजन सुप्र संचिय। जगत जानु अयलय लहि मतिराम सुकवि हित देशग मम माज मौज फौजनि घर रचिय ॥ चित धरिय। हुँदैन और गुजरपती चन्द्रमार महिपाल सुव । धनि पीर परनिमंटन प्रदान रचि छदसार संग्रह सरस सु इमि दंडक पद्धति करिय ॥२०॥ मुमित माहि नग्नाइव ॥३॥ अनिमेटनीन बात, गरबान गग्द ठि। ललितललाम से उद्धृत इद- निमिर तुलिन तुरकान प्रयल दिशि विदिश प्रगट्टत। गुरतुर मात्र गुट जान मुश्रान मनु नठि॥ चान पंथ पंथीन धरम श्रुति करमनि धट्टत ।। 19 996 strm मनितनाम ८६५,६०,७५, ५, ६ । .