पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कई कारणों से मैं उनके देखने में असमर्थ रहा। काल तक जीवित देहों पीर मी ही ओजस्विनी खोज की रिपोर्टों में आज तक मिले हुर भूपण, | भाषा में कविता करते रद हो जैसी कि शिवराज मतिराम, चिन्तामणि और नीलकंठ के किसी ग्रंथ | भूषण की है। इससे भी यही प्रमाणित होता है के उद्धृन भाग में यह वर्णन नहीं मिला। अत. यदी कि नीलकंठ भूषण के भाई न थे। मानना पड़ता है कि शिवसिंह सरोज की प्रारया. इस प्रकार चिंतामणि और भूषण हो किंवदंती यिका से ही यह भ्रांति मर्व साधारण में फैली है। के आधार पर केयल माईरह जाते हैं। इस किंवदंती अब नक तो मुझे भूषण और मतिराम के माई में भी कहाँ तक सनाई है, या अमी नहीं कहा होने ही में संदेह था, परंतु अय नोनक या जटा- जा सकता। आगे इस पर भी विचार किया शंकर भी भूपण के भाई प्रतीत नहीं होते। वीर केशरी जायगा। शिवाजी" नामक ग्रंथ में पंडित नदकुमार देव शर्मा इस लेख का मुख्य उद्देश नो यदी था कि ने चिंतामणि, भूपण और मनिराम तीन ही भाइयों भूपण और मतिराम के भाई होने के संबंध में पर. का जिक किया है। नीलकंठ को भाई नहीं माना। ताल को जाय, परतु भूषण तथा मनिराम के संबंध शात नहीं, उनका इस विषय में क्या प्राधार है कुछ और भी भ्रांतियां फैली हुई है। अतः उनको परंतु मुझे तो मिश्रबंधु विनोद के ही आधार पर भी दूर करना उचित प्रतीत होता है। भूपण के नीलकर के माई होने में संदेह है। मिश्र मिश्रबंधु विनोद तथा हिन्दी नवरत में इंद चंधु विनोद में वर्णिन है कि नीलकर ने सवन् सार पिंगल महाराज शम्भूनाथ सोलंकी के नाम पर १६६८ में अमरेश विलास नामक ग्रंथ रचा था। लिखा यतलाया गया है, परंतु शिरसिंह सरोजा उनकी अवस्था उस समय २५-३० वर्ष से न्यून | में छदसार रिगल से एक छंद उद्धृत किया गया न होगी, इस कारण उनका जन्म संपत् १६७० वि० है जो कि इस लेख्न में उदृत हो चुका है। के लगभग पड़ता है। और विनोद में भूपण का उसमें श्रीनगर (धुंदलपंड) नरेश महाराज फतह जन्म संवत् १६६२ वि० माना है। जव भूपण के | साहि और मित्र साहि बुंदेले के पुत्र स्वरूपसिंह छोटे भाई नीलक का जन्म १६७० के लगभग है, को यहुन प्रशंसा की गई है। अतः प्रतीत होता है तो भूषण का जन्म उससे भी पूर्व होना चाहिए कि इन्हीं दोनों के आश्रय में यह ग्रंथ रचा गया है, था। परंतु विनोद इसके २० घर्प पीछे मानता महाराज शम्भूनाथ सोलको के आश्रय में नहीं है जो कि अशुद्ध है । भूपण के सवत् १७६७ वि० लिखा गया। तक अवस्थित रहने का एक द प्रमाण भी मिला मिश्रचंधु विनोद में बूंद कवि ४ को भूषण का है जो कि आगे दिया जायगा । अतः यह कभी घंशज माना है जो कि नितान्त अशुद्ध है। उसमें वृंद सम्भव नहीं कि भूषण १३० वर्ष से भी अधिक * मिश्रयंधु विनोद पृ० १६१।

  • धीरकेशरी शिवाजी, ५० नंदकुमारदेव शमां कृत

+हिंदी नवरण पृ०३१० है शिवसिंह सरोन पृ० २५६ । पृ०६६२ ४ मिश्रमधु विनोद पृ. ५४६ और हिंदी नवरम मिभनंधु विनोद पृ० ४६५ पृ० १५३