पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२७

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( २४ ) की रिपोर्ट में शिवराज भूषण का निर्माण काल | है। यह कल्पिन निर्माण काल पीछे से किसी व्यक्ति संवत् १७३० वि० दिया है। वह कविता भूषण के | ने रचकर मिला दिया है और उसका समय नाम से शिवराज भूपण के अंत में इस प्रकार शिवाजी के देहांन के समय का रख दिया है। मेरे विचार से शिवगज भूपगा महाराज साह संघत् सत्रह सैंतीस सुचि वदि तेरस मान । के समय में बना है जो शिवाजी के पौत्र थे। भूषन शिव भूपन कियो पढौ सुनौ सम्यान* ॥३१६ उनके विषय की मिथ्या किंवदंतियाँ उनके चित्र कवित्व-पक प्रभुता कौ धाम सजै तीने जीवन को अंधकार में डाले हुए हैं जो कि ठीक घेद काम रहै पचानन वड़ानन राजी सर्वदा।। ठीक निर्णय नहीं होने देती। एक ही बात भित्र सातौ वार आठौ जाम जाचिक निवाजे अवतार भिन्न रीति से कही जाती है। शिवराज भूषण * थिराजै क्रिपान ज्यो हरि गदा । शिवराज भूपण की भूमिका में रंगवासी में छपी शिवाघावनी के अटल रहै तौ लौ जो लौ बिदस भुवन सम गंग श्री श्राधार पर लिखा है कि चितामणि का जन्म संवत् नरमदा। साहि तनै साहसीक भौसला सरजा १६५८ और भूपण का संवत् १६७५ प्रतीत होता है; घंस दासरधी जा रसता सरजा चि सरदा।३२० परंतु घे दोनों सवत् भी अशुद्ध ही प्रतीत होते हैं। उपर्युक्त कविता इतनी निकृष्ट श्रेणी की उसी भूमिका में यह भी कथन किया है कि जिसे कुछ भी साहित्य का ज्ञान है, वह गया है कि शिवाजी दिल्ली गए थे और वहीं औरंग- तुरंत कह देगा कि यह कविता कदापि महाकवि जेय ने उन्हें कैद कर लिया । यधार्थ में शिवाजी भूषण की रची नहीं है । शिवरोज भूपण के किसी दिल्ली नहीं आगरे में उपस्थित हुए थे और वहीं से छंद से उपर्युक्त छंद का मिलान करने से स्पष्ट | मथुरा होकर चुपके निकल भागे थे। विदित हो जायगा कि यह कविता किसी ने पीछे आगे चलकर उसी भूमिका में लिखा है कि से मिला दी है। मेरा अनुमान है कि महाराज सवत् १६६७ में मतिगम अपने भाई भूषण को बूंदी घनारस के किसी कवि की ही यह करतूत है। ले गए थे। परनु मेरे विवार से मतिराम राब राजा बनारस राज्य के पुस्तकालय के अतिरिक्त अन्य भाऊसिंह के मरने पर ही १७४५ मैं वहाँ से चले जितनी प्रतियाँ शिवराज भूषण की प्राप्त हुई है, आए थे। संवत् १७५= में तो वे बुंदलखंड में स्वरूप- उनमें से किसी में भी उपर्युक्त छद नहीं है और न सिंह बुंदेले के यहाँ रहते थे। तभी वृत्त कौमुदी ग्रंथ छुपी हुई प्रतियों में ही उक्त वर्णन पाया जाता है। रचा था। और इससे पूर्व स्वरूपसिंह तथा फतह अतः सिद्ध है कि वे दोनों छंद घनावटी हैं। शाह के आश्रित रहकर छदसार पिंगल ग्रंथ ज्योतिष-गणना के अनुसार आषाढ़ कृष्णा २३ रचा था। मतिराम का कोई छंद राव राजा अनि- को बुधधार पड़ता है, परंतु उक्त दोहे में रविवार पड़ता है। अत' यह निर्माण काल नितांत अशुद्ध

  • शिवराज भूपण भूमिका पृ० ८।

+शिवराज भूषण पृ० १०॥

  • सन् १६०३ को सीन की रिपोर्ट पृ०४३ । * वीर फेशरी शिवाजी पृ० ६७५ ।