पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२९

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( २६ ) दूसरी रिपोर्ट में मतिराम सतसई का भी धर्णन | जैसा कि शिवसिंह सरोज * में भी दिया है। है*, परन्तु उसमें निर्माण काल नहीं है और न लेख्न से भी यही सिद्ध होता है। विनोद के अनुसार पश परिचय है । निरीक्षक महादय ने मतिराम के चिन्तामणि के जन्म तथा भूपण के ठीक जन्म काल जन्म और मृत्यु के आनुमानिक सवत् दिए है। मं २ वर्ष का अन्तर पडना है जो कि सहोदर खोज की वैधार्षिक रिपोर्ट सन् १६०६-०८ भाइयों में कभी संभव नहीं । अन. चिन्तामणि भी में मतिराम के तीन ग्रयों का वर्णन है-रस- | भूपण के भाई नहीं माने जा सकते । राज, साहित्य सार, और लक्षण हार । इन खोज की रिपोर्टों के आधार पर चिन्ता. तीनों में से किसी में भी निर्माण काल अथवा मणि, भूषण, मतिराम और नीलकंठ के रचित कवि वश का परिचय आदि नहीं दिया है इनका | ग्रंथों 2 से शिवराज भूषण को छोडकर किसी ललितललाम और रसराज तो छप भी चुका है, | ग्रंथ से कधि के समय और चंशादि का परि- और छन्दसार पिंगल का उल्लेख शिवसिह सराज | चय नहीं मिलना। शिवराज भूपण । में कवि में किया गया है। और नोलकठ न अमरेश विलास ने बघत पिता का नाम, यश, स्थान और पाश्रय- स० १६६८ वि० में रचा था: । चिन्तामणि दाता का नाम दिया है । एक वृत्त कौमुदी त्रिपाठी कृत कविकुल कल्पतरु मी छप चुका है। हो ऐसा ग्रंथ है जिसमें मतिराम का विस्तार उसमें भी निर्माण काल श्रादि का कोई वर्णन के साथ चश-परिचय, समय और श्राश्रयदाता नहीं है। केवल सन् १६०२ की रिपोर्ट के परि- का वर्णन है। अत. यह ग्रन्थ साहित्य का , शिष्ट में उसका निर्माण काल सन् १६५० १७०७ / इतिहास जाननेवाले सजनों के लिये बहुत उप. वि० दिया है। चिन्तामणि कृत पिंगल + में योगी है। इससे बहुन सी उलझी हुई बातें सुल. भी कोई सम्बत् नहीं दिया है। मेरा तो अनुमान | झने की संभावना है। यह खोज का कार्य कितना यह है कि चिन्तामणि भी भूपण क माई नहीं थे | उपयोगी और आवश्यक है, यह इसीसे प्रकट होता क्योंकि भूषण का जन्म स० १७३८ वि० सिद्ध है है। ज्यों ज्यों समय बीनना जाता है, पुस्तके नष्ट होती जाती हैं। अशिक्षित लोग हलवाई, पसारी

  • सन् १६०४ की रिपोर्ट न० ११८

आदि के यहाँ रद्दी में पुस्तके वेच देते है अथवा । त्रैवार्षिक रिपोर्ट सन् १६०६-८ पृष्ठ ७८, सन् गंगा जी के हवाले कर देते है। अथवा वे स्वयं सड़ १९०१ की रिपोर्ट पृष्ठ ५८, १६०३ की रिपोर्ट पृष्ठ ४८ गलकर नष्ट हो रही है। उनका जितना शीघ्र प्रबंध और १६.. की रिपोर्ट पृष्ठ ३८ । हो सके, किया जाना चाहिए। उपर्युक्त दृश्य कई

  • सन् १९०३ की रिपोर्ट, पृष्ठ १ ।

स्थानों पर मैंने स्वय देखे हैं और पुस्तकों को रक्षित सन् १९०४ को रिपोर्ट का परिशिष्ट न० ११६ और रखने का प्रबंध किया है। १९०३ की रिपोर्ट न १५७ । +सन् १९०३ की रिपोर्ट, पृष्ठ 8 और १६०२

  • शिवसिह सरोज, पृष्ठ ४६७ ।

को रिपोरं म० ११६ । शिवराजभूषण, पृष्ठ २६-२६ ।