(९०) उसका स्वतंत्र प्रबंध करने लगे। यहां इनको अच्छी आमदनी बस एक तो रुपया पास, दूसरे युवा अवस्था, तीसरे स्वतंत्रता, तो ने अपना चमत्कार दिखलाया और अपने पात्र से मन माना न नचयाया। कुछ दिनों पोछे जब टिकारी राज्य में नाबालिगो कारण सरकारी प्रबंध हो गया और इनका उस राज्य से संबंध तो ये फाशी चले पाए, उस समय इनकी २४ वर्ष की अवस्थार्थ टिकारी राज्य में बनारस के राजामहाराज ईदयरो प्रसाद नार यण सिंह को बहिन प्याही थी। इसीसे ये बनारस में उक्त मा राज के कृपापात्र हुए। इन्होंने मुसाहब बन कर दरबार में रहन तो पसंद न किया परंतु चकिया और नयगढ़ के जंगलों के ठोका लिया। इन जंगलों की लाह लकड़ी तथा और और पैदाया की आमदनी इनको थी इसी कारण इनको सब जगह घूमना फिरन पड़ता था । इस अवस्था में इन्होंने जंगल की सूष सैर की। उ जंगलों के घोहड़, बन, पहाड़ो, सोहें, और प्राचीन इमारतों के म शेप मादि दर्शनीय स्थान इन्होंने बड़ी सावधानी से देखे। इसी समय इनको कुछ लिसने की धुन समाई और हिंदी में चंद्रकांता नामक उपन्यास लिसने का इन्दोंने लग्गा लगा दिया इस पुस्तक में इन्होंने अपने गया जी की जयानी के तजये और काशी में पाने पर अपनी मांखों देखी जंगलों की यहार का पर्यन किया है। चंद्रकांता पहिले हरिप्रकाश प्रेस से एप कर प्रका शित हुई। यह पुस्तक सर्वसाधारण को पड़ी चिकर यहात कि संकड़ों पादमी इसीकी बदौलत हिंदी के पाठक बन गप। धीय का एक को इसोको पदौलत हिंदी लिखने का शौक लग गया। चंद्रकांता और संतति के ११ नंबर हरिमका प्रेस में , इस पोसन् १८९catसतंबर में पापने BEN सनाम से अपना निवासयोल लिया। इन नरेंद मोहनी, काममा
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