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( ९१ ) वारंवार, और काजर को कोठरी ये चार उपन्यास और भी हैं। ये सब निज कल्पना शक्ति से लिखे गए हैं। इस समय आप चंद्र- कांता संतति के संबंध में भूतनाथ की जीवनी लिख रहे हैं। इन्होंने अपने निज के खर्चे से सुदर्शन नाम का एकमासिक पत्र भी निकाला था जो कि उस समय हिंदी में एक प्रसिद्ध मासिकपत्र था। सम्पादक इसके पंडित माधवप्रसाद मिश्र थे। परन्तु सम्पादक महाराय का देहांत हो जाने से सुदर्शन का भी प्रदर्शन हो गया । वाबू देवकीनंदन ने हिंदी साहित्य के एक अंग को पूर्ति में बहुत नाम पाया है और इसीसे उनके द्वारा हिंदी भाषा का भी बहुत उपकार हुआ है।