पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१३

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क्रोध मुझे लौटा दीजिए। पर अब ऐसा करने में वह समर्थ ना था ।एक जहाजी नौकर ने अपनी बेड़ी फेंक दी थी और बदले में वात रोग की गठरी उठा ली। पर इससे उसका स्वरूप ऐसा विचित्र हो गया था कि देखते नहीं बनता था। इसी प्रकार सभी ने कुछ न कुछ हेरा फेरी की। किसी ने अपने दारिद्रव के पलटे में कोई रोग पसंद किया, किसी ने तुधा देकर अजीर्ण उठा लिया। बहुतेरों ने अपनी पीड़ा के बदले कोई चिंता ले ली। पर सबसे अधिक स्त्रियाँ ही इस हेरा फेरी में दिखाई देती थीं। इन्हें अपने नाक, कान वा चेहरे मोहरे के चुनने में बड़ी कठिनाई मालूम पड़ती थी। कोई अपने मुख पर के तिल से लंबे लंबे केश बदल रही हैं, किसी ने पतली कमर के बदले चौड़ा सीना लेने की इच्छ प्रकट की है। किसी ने अपनी कुरूपता देकर वेश्यावृत्ति ग्रहण करना ही सस्ता समझ लिया है। जो हो, पर ये अबलाएँ अबला होने के कारण वा अपनी तीक्ष्णता के कारण अपनी नवीन दशा को शीघ्र ही समझ जायँगी एवं अपनी पूर्व दशा को प्राप्त होने और नवीन के त्यागने में सबसे पहले तत्पर हो जायेंगी ।

मुझे सबसे अधिक दया उस कुबड़े पर आती है जिसने अपना कुबड़ापन बदलकर पैर का लँगड़ापन पसंद किया था।

अब मैं अपना वृत्तांत सुनाता हूँ। मैं पहले कह चुका हूँ कि मेरे बगलवाले मनुष्य ने मेरा छोटा मुख अपने लिये चुन रखा था। उसने अवसर पाते ही मेरा चेहरा उठा लिया और