पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २० )


"घोड़े, कुत्ते, कसरत, खाना पीना इत्यादि क्षुद्र विषयों पर बातचीत न करो। परनिदा अथवा स्तुति-पाठ न करो।" मार्कस पारीलियस ने कहा है-"जिस समय तुम्हें अपना मनोरंजन करना हो उस समय अपने सहवास में रहनेवालों के सद्गुणों का चितन करो। वह तीक्ष्ण बुद्धिवाला है, वह सभ्य प्राचारवाला है, वह उदारहृदय है, इस पर ध्यान दो। इसका कारण यह है कि जो लोग अपने संग रहकर हमेशा आँखों के सामने आते हैं उनके अच्छे गुणों का आदर्श सम्मुख रखकर उस का अनुसरण करने में जैसा आनंद होता है वैसा किसी और तरह से नहीं होता।" परंतु इसके अनुसार बर्ताव करते नहीं बनता । जिन्हें हम अपना मित्र समझते हैं, उनके चेहरे तथा भाषा ही का हमें परिचय होता है कितु उनके अंत:- और शील का हमें बहुधा ज्ञान ही नहीं होता।

जितनी चिंता करके हम मित्र प्राप्त करते हैं उतनी ही चिंता के साथ जुड़ी हुई मित्रता की रक्षा करनी चाहिए। पास्कल का कहना है-"एक के पीठ पीछे दूसरा उसके विषय में क्या कहता है, यह अगर सबको मालूम हो जाय तो संसार में चार मित्रों का भी मिलना कठिन होगा।" यह कदाचित् व्यंग की अत्युक्ति हो इससे उन चारों में से स्वयं एक होने की इच्छा रखो। जिस किसी को तुमने एक बार मित्र कहा उसकी रक्षा करो, सदा उससे मिलने जाओ, क्योंकि जिस मार्ग से कभी कोई जाता आता नहीं है उसमें घास