पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/२६

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और काँटे पैदा होकर उस मार्ग का नाम निशान तक नहीं रहने देते। अपने मित्रों के पास आ जाकर उनसे मिल मिला- कर यदि प्रीति रक्षित न रखी जाय तो वह नष्ट हो जाती है। आज यहाँ तो कल वहाँ, इस प्रकार का अस्थिर प्रेम व्यर्थ है।

ऐसा बर्ताव करने का किसी को अधिकार नहीं है जिससे मित्रता के नाते किसी को जरा भी असंतोष पैदा हो जाय । कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जब तक उनके मित्रों की मित्रता नष्ट होने से वे मित्र ही नहीं रह जाते तब तक उनकी असली योग्यता का ज्ञान उन्हें नहीं होता। ऐसे मित्रों का पोछे सम्मान करना निष्फल है। "मृत मनुष्य के आदर के हेतु उसके लिये बड़ो कीमती छतरी बनाई जाय तो पत्थर, चूने में धन का व्यय करने के सिवा और क्या लाभ होगा?"

"अपने मृत मित्र की चिता के पास खड़ा रहकर जो मनुष्य उसके समागम-सुख का विचार करेगा और यह देखेगा कि अब मैं प्रेमाकुल होकर चाहे जितना रोऊँ पर अपने मित्र की स्तब्ध नाड़ी को सचेत नहीं कर सकता या उसकी काया को छोड़ जानेवाली आत्मा के सामने मैं दिए हुए दुःख का पश्चात्ताप करके तमा नहीं माँग सकता तो वह निश्चय कर लेगा कि अपने मित्र को इस प्रकार का मर्मभेदी दुःख देने का पातक अब मैं न करूंगा।"

मृत्यु से मित्रता का नाश नहीं होता। सिसिरो ने लिखा है--"अपने मित्र चाहे दूर भी हो तथापि वे निकट ही रहने