यहाँ किसने आने दिया ? सत्य बोला “राजा सिवाय तेरे
इनको यहाँ और कौन आने देगा ? तू ही तो इन सबको लाया।
ये सब तेरे मन की बुरी वासनाएँ हैं। तूने समझा था कि जैसे
समुद्र में लहरें उठा और मिटा करती हैं उसी तरह मनुष्य के
मन में भी संकल्प की मौजें उठकर मिट जाती हैं। पर रे मूढ़!
याद रख, कि आदमी के चित्त में ऐसा सोच विचार कोई नहीं
आता जो जगकर्ता प्राणदाता परमेश्वर के सामने प्रत्यक्ष नहीं
हो जाता। ये चिमगादड़ और भुनगे और साँप बिच्छू और
कड़े मकोड़े जो तुझे दिखलाई देते हैं वे सब काम, क्रोध, लोभ,
मोह, मत्सर, अभिमान, मद, ईर्षा के संकल्प विकल्प हैं जो दिन
रात तेरे अंतःकरण में उठा किए और इन्हीं चिमगादड़ और
भुनगों और साँप बिच्छू और कीड़े मकोड़ों की तरह तेरे हृदय
के आकाश में उड़ते रहे। क्या कभी तेरे जी में किसी राजा
की ओर से कुछ द्वेष नहीं रहा या उसके मुल्क माल पर लोभ
नहीं आया या अपनी बड़ाई का अभिमान नहीं हुआ या दूसरे
की सुंदर स्त्री देखकर उस पर दिल न चला ?"
राजा ने एक बड़ी लंबी ठंडी साँस ली और अत्यंत निराश
होके यह बात कही कि इस संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं
है जो कह सके कि मेरा हृदय शुद्ध और मन में कुछ भी पाप
नहीं। इस संसार में निष्पाप रहना बड़ा ही कठिन है। जो
पुण्य करना चाहते हैं उनमें भी पाप निकल पाता है। इस
संसार में पाप से रहित कोई भी नहीं, ईश्वर के सामने पवित्र