पुण्यात्मा कोई भी नहीं। सारा मंदिर वरन् सारी धरती
आकाश गूँज उठा "कोई भी नहीं, कोई भी नहीं।"
जो आँख उठाकर उस मंदिर की एक दीवार की ओर देखा
तो उसी दम संगमर्मर से आईना बन गया। उसने राजा से
कहा कि अब टुक इस आईने का भी तमाशा देख और जो कर्तव्य
कर्मों के न करने से तुझे पाप लगे हैं उनका भी हिसाब ले।
राजा उस आईने में क्या देखता है कि जिस प्रकार बरसात
की बढ़ी हुई किसी नदी में जल के प्रवाह बहे जाते हैं उसी
प्रकार अनगिनत सूरतें एक ओर से निकलती और दूसरी
ओर अलोप होती चली जाती हैं। कभो तो राजा को वे
सब भूखे और नंगे इस आईने में दिखलाई देते जिन्हें राजा
खाने पहनने को दे सकता था पर न देकर दान का रुपया
उन्हीं हट्टे कट्टे मोटे मुसंड खाते पीतों को देता रहा, जो
उसकी खुशामद करते थे या किसी की सिफारिश ले आते थे
या उसके कारदारों को घूस देकर मिला लेते थे था सवारी के
समय माँगते माँगते और शोर गुल मचाते मचाते उसे तंग कर
डालते थे या दर्बार में आकर उसे लज्जा के भवर में गिरा देते थे
या झूठा छापा तिलक लगाकर उसे मक्र के जाल में फंसा लेते थे
या जन्मपत्र के भले बुरे ग्रह बतलाकर कुछ धमकी भी दिखला
देते थे या सुंदर कवित्त और श्लोक पढ़कर उसके चित्त को
लुभाते थे। कभी वे दीन दुखी दिखलाई देने जिन पर राजा
के कारदार जुल्म किया करते थे और उसने कुछ भी उसकी
पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/४२
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