पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३८ )


तहकीकात और उपाय न किया। कभी उन बीमारों को देखता जिनका चंगा करा देना राजा के इख्तियार में कभी वे व्यथा के जले और विपत्ति के मारे दिखलाई देते जिनका जी राजा के दो बात कहने से ठंढा और संतुष्ट हो सकता था। कभी अपने लड़के लड़कियों को देखता था जिन्हें वह पढ़ा लिखाकर अच्छी अच्छी बाते सिखाकर बड़े बड़े पापों से बचा कभी उन गाँव और इलाकों को देखता जिनमें कुएँ तालाब और किसानों को मदद देने और उन्हें खेती बारी की नई नई तर्कीबें बतलाने से हजारों गरीबों का भला कर सकता था। कभी उन टूटे हुए पुल और रास्तों को देखता जिन्हें दुरुस्त करने से वह लाखों मुसाफिरों को पाराम पहुँचा सकता था ।

राजा से अधिक देखा न जा सका, थोड़ी देर में घबड़ाकर हाथों से उसने अपनी आँखें ढॉप लीं। वह अपने धर्मड में उन सब कामों को तो सदा याद रखता था और उनकी चर्चा किया करता जिन्हें वह अपनी समझ में पुण्य के निमित्त किए हुए सकता था, पर उसने उन कर्त्तव्य कामों का कभी टुक सोच न किया जिन्हें अपनी उन्मत्तता से अचेत होकर छोड़ दिया सत्य बोला 'राजा अभी से क्यों घबरा गया ?आ इधर आ, इस दूसरे आईने में तुझे अब उन पापों को दिख- लाता हूँ जो तूने अपनी उमर में किए हैं।" राजा ने हाथ जोड़ा और पुकारा कि बस महाराज, बस कीजिए, जो कुछ देखा उसी में मैं तो मिट्टी हो गया, कुछ भी बाकी न रहा,अब