पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/११६

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हिंदी भाषा अर्धस्वर-1 और ॥ अर्थात् य और व। द्रव-वर्ण--अनुनासिक और अर्घस्वर वर्णो के अतिरिक्त दो द्रववर्ण अवश्य मूल भारोपीय भाषा में विद्यमान थे अर्थात् र और ल। सोम ध्वनि- स, Z , य, v व्ह, 'ग',pथ, : द, ये सात मुख्य सोम ध्वनियां थीं। वैदिक ध्वनि-समूह अब हम तीसरे काल की ध्वनियों का विचार करेंगे। वैदिक ध्वनि-समूह, सच पूछा जाय तो, इस भारोपीय परिवार में सबसे प्राचीन है। उस ध्वनि-समूह में ५२ ध्वनियाँ पाई जाती हैं.-१३ स्वर और ३६ व्यंजन। स्वर- नव समानाक्षर-अ, श्रा, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ,ल चार संध्यक्षर-ए, श्री, ऐ, श्री व्यंजन-- कंट्य-क, ख, ग, घ, ङ तालव्य-च, छ, ज, झ, ञ मृन्य -ट, ठ, ड, ढ,ळ, लह, ए दंत्य-त, थ, द, ध, न मोठय-प, फ, च, भ, म अंतस्थ-य, र, ल, व ऊष्म-श, प, स प्राणध्यनि-ह अनुनासिक-- (अनुस्वार) अघोप सोम वर्ण-विसर्जनीय, जिह्वामूलीय और उपध्मानीय। ऐतिहासिक तुलना की दृष्टि से देखें तो वैदिक भाषा में कई परि धर्तन देस पड़ते हैं। भारोपीय मूलभाषा की अनेक ध्वनियां उसमें नहीं अभाव पाई जाती। उसमें (१) हस्व , और (२) दीर्घ 8,0; (३) संध्याक्षर ei, of, eu, ou; ai, ei, bi, au, eu, ou, (५) स्वनंत अनुनासिक व्यंजन, (५) और नाद सोम 7 का प्रभाव हो गया है। अभाव