पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१२४

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१२२ हिंदी भाषा वाले व्यंजन ह, य, व, र, ल हैं। स्वरों के समान ये पांचों व्यंजन भी घोप होते हैं। (४) सातवे सूत्र में पांचों अनुनासिक व्यंजनों का वर्णन है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि स्वर और व्यंजनों के बीच में अंतस्थ और अनुनासिक व्यंजनों का पाना सूचित करता है कि इतनी ध्वनि प्रातरिक भी हो सकती है। (५) इसके बाद ८, ९, १०, ११ और १२ सूत्रों में २० स्पर्शव्यं- जनों का परिगणन है। उनमें भी पहले ८, ६, १० सूत्रों में घोपव्यंजनों का वर्णन है। उन घोप-स्सों में से भी पहले महाप्राण घ, झ, ढ, ध, भ श्राते हैं तव अल्पप्राण ज, ब, ग, ड, द आते हैं। फिर ११ और १२ सूत्रों में अघोप स्पर्शों का वर्णन महाप्राण और अल्पप्राण के कम से हुआ ह-ख, फ, छ, ठ, थ और फ, च, ट, त,प। (६) १३ और १४ सूत्र में अघोप सोम वर्गों का उल्लेख है- श, प, स और ह। संस्कृत में ये ही घर्ष-व्यंजन हैं। इन्हें ही ऊष्मा कहते हैं। अंतिम सूत्र हल ध्यान देने योग्य है। बीच में पांचवे सूत्र में प्राण-ध्वनि ह की गणना की जा चुकी है। यह अंत में एक नया सूत्र रखकर अघोप तीन सोम ध्वनियों की ओर संकेत किया गया है। विस- र्जनीय, जिह्वामूलीय, उपध्मानीय ये तीन प्राण-ध्वनि ह के ही अघोप रूप हैं। इस प्रकार इन सूत्रों में क्रम से चार प्रकार की ध्वनियाँ पाती हैं-पहले स्वर, फिर ऐसे व्यंजन जो स्वनंत स्वरों के समानधर्मा (cor- • responding) व्यंजन है। तय स्पर्श-व्यंजन और अंत में घर्प-व्यंजन । याजकल के भापा-यैज्ञानिक भी इसी क्रम से चणों का वर्गीकरण करते हैं। (१)श्र, श्रा, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ,ल, ए, ओ, ऐ,श्री। (२) ह, य, व, र, ल, ञ, ण, न, म। (३) क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ इत्यादि चीसो स्पर्श। (४)श, प, स, ह। पाली ध्वनि-समूह पाली में दस स्वर अश्रा इ ई उ ऊ ए ए श्री श्री पाए जाते हैं। , ऋ,ल, पे, श्री का सर्वथा अमाव पाया जाता है।) ऋ के स्थान में श्र, अथवा उ का प्रयोग होता है। ऐी के स्थान में पाली में ए श्री हो जाते हैं। संयुक्त व्यंजनों के पहले हस्त्र ऐ ओ भी मिलते हैं। घेदिक संस्कृत की किसी किसी विभाषा में हस्व ऐ ओ मिलते थे पर साहित्यिक घेदिक तथा परवर्ती संस्कृत में तो उनका सर्वथा अभाव हो