पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१३३

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हिंदी का शास्त्रीय विकास . . : १३१ फोई कोई प्राकृत के 'करिनो' को संस्कृत के 'कार्यः' से निकला हुआ मानते हैं। संभवतः इसका पुराना रूप 'करिद' न कि 'करिश्र' हो सकता है; पर 'करिद' से 'कर' नहीं निकल सकता। यदि हम इसे 'कार्यः' से निकालते है, तो इसके अर्थ में बाधा उपस्थित होती है। शतः भृत कृदंत का रूप है और कार्यः भविष्य कृदंत का। भूत और भविष्य के भावों में बहुत भेद है; अतएव एक ही अर्थ के धोतक शब्द को दोनों से निकला हुआ मानना ठीक नहीं। पर संस्कृत में भी इस प्रकार अर्थ का विपर्यय होता है। अतः फेरो और फरो को सं० कार्यः, प्रा० करिश्रो से निकला हुआ मानने में कोई अड़चन नहीं है। अतएव यह स्पष्ट है कि प्रथम श्रेणी के प्राकृत प्रत्ययों से की, को, का, के, कु निकले हैं और दूसरी श्रेणी के प्रत्ययों से केरो, केर, कर, क निकले हैं। पर इन व्युत्पत्तियों का श्राधार अनुमान ही अनुमान है। अतः हम इनके परम मूल की गवेषणा छोड़कर केवल प्राकृत के 'केर' or" प्रत्यय और अपभ्रंश के "केर" या 'केरक' शब्द से ही इनकी व्युत्पत्ति मानकर संतोप करें तो अच्छा है। जिस प्रकार 'यलीवर्द' के दो खंडों- घली और दर्द से क्रमशः यैल और बर्दा एवं 'दे' के दो खंडों द् और वे से फमशः हिंदी 'दो' और गुजराती तथा पुरानी हिंदी निकले हैं, वैसे ही 'केरक' से फेर (पश्चिमी अवधी 'रामकेर', 'पर' (बगला), 'क' (भोज- पुरिया और पूर्वी अवधी) और 'का' का उत्पन्न होना कोई आश्चर्य नहीं। (५) अधिकरण कारक-हिंदी में इसका चिलमि' है। यह संस्कृत के 'मध्ये' से निकला है। प्राकृत और अपभ्रंश में इसके मझो, मज्झि, मज्झहिं रूप होते हैं।) इन्हीं रूपों से आधुनिक भाषाओं की विभक्तियों के दो प्रकार के रूप बन गए हैं--एक वह जिसमें झ बना हुआ है, और दूसरा वह जिसमें झ के स्थान में ह हो गया है। इन्हीं रूपों से ममि, मांझ, माहै, माही, माही, माह, मह, माँ, मो और में कप बने हैं। यह धीम्स तथा हानली का मत है। वस्तुतः 'मैं' को पाली, प्रारत के स्मि, म्हि, म्मि से ही उद्भत मानना चाहिए। प्राकृत अथवा संस्कृत में जहाँ जहाँ 'मज्झहिं' या 'मध्ये' का प्रयोग हुश्रा है, वहाँ वहाँ उसके पूर्व में पठी विभक्ति वर्तमान रहती है; अतः उसे मध्य शब्द का अर्थानुरोध से प्रयुक्त स्वतंत्र रूप ही समझना चाहिए, न कि अधिकरणता-बोधक विभक्ति। दूसरे 'पृथ्वी- राज रासो' श्रादि प्राचीन हिंदी काव्यों में साथ ही साथ 'माझ' आदि • तथा 'मैं' का प्रयोग देखकर यह कोई नहीं कह सकता कि 'मध्य' से घिस घिसाकर 'में उत्पन्न हुआ है। अतः 'म्मि' से ही 'में निकला है, इसमें