पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१६४

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विषय प्रवेश १६५ चुका था, अतः उसमें 'देशी' संगीत का बहुत कुछ पुट पाया जाता है। इसके अतिरिक्त रागों और रागिनियों के अनेक भेदों का ठीक ठीक अभि- व्यंजन करने की क्षमता जितनी हिंदी ने दिखलाई, साथ ही जितने सुचारु रूप से संगीत के अन्य अवयवों का विकास उसमें हुन्ना है उतना अन्य किसी प्रांतीय भाषा में नहीं हुआ। हमारे साहित्य पर उपर्युक्त जातिगत तथा देशगत प्रवृत्तियों का प्रभाव बहुत कुछ स्थायी है। इनके अतिरिक दो-एक अन्य प्रासंगिक हिंदी,की दो अन्य __ वाते है जिनका हिंदी साहित्य के विकास से घनिष्ठ संबंध रहा है तथा जिनकी छाप हिंदी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ पार साहित्य पर स्थायी नहीं तो चिरकालिक अवश्य म है। पहली बात यह है कि हिंदी साहित्य के प्रारंभिक युग के पहले ही संस्कृत साहित्य उन्नति की चरम सीमा तक पहुँचकर अध:पतित होने लगा था। जीवित साहित्यों में नवीन नवीन रचना-प्रणालियों के श्राविर्भाव तथा अन्य अभिनव उद्भावनाओं की जो प्रकृति होती है, उसका संस्कृत में अभाव हो चला था। अनेक रीति ग्रंथों का निर्माण हो जाने के कारण साहित्य में गतिशीलता रह ही नहीं गई थी। नियमों का साम्राज्य उसमें विराज रहा था, उनका उल्लंघन करना तत्कालीन साहित्यकारों के लिये असंभव सा था। ये नियम भी ऐसे वैसे न थे, वे बहुत ही कठोर तथा कहीं कहीं यहुत ही अस्वाभाविक थे। इन्हीं के फेर में पड़कर साहित्य की स्वाभाविक प्रगति रुक सी गई थी और तत्कालीन संस्कृत में जीवन की गति तथा उल्लास नाम मात्र को भी नहीं रह गया था। संस्कृत कविता अलंकारों से लदी हुई जीवन-हीन कामिनी की भांति निष्प्रभ तथा निस्सार हो चुकी थी। हिंदी के स्वतंत्र विकास में संस्कृत के इस स्वरूप ने बड़ी बड़ी रुकावटें डाली। एक तो इसके परिणाम स्वरूप हिंदी काव्य का क्षेत्र यहुत कुछ परिमित हो गया; और दूसरे हिंदी भाषा भी स्वाभाविक रूप से विकसित न होकर बहुत दिनो तक अव्यवस्थित बनी रही। यदि हिंदी के भक्त कवियों ने अपनी प्रतिभा के बल से उपर्युक्त दुष्परिणामों का निवारण करने की सफल चेष्टा न की होती तो हिंदी की आज कैसी स्थिति होती, यह ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता। खेद है कि भक्त कवियों की परंपरा के समाप्त होते ही हिंदी के कवि फिर संस्कृत साहित्य के पिछले स्वरूप से प्रभावान्वित होकर उसका अनु- सरण करने लगे, जिसके फल-स्वरूप भाषा में तो सरलता तथा प्रौढ़ता श्रा गई, परंतु भावों की नवीनता तथा मौलिकता बहुत कुछ जाती रही ।