पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१६८

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विषय प्रवेश १६६ बड़ा घनिष्ठ संबंध होता है परंतु वह संबंध पेसा यांत्रिक तथा कठोर नहीं होता कि साहित्य उन स्थितियों की अवहेलना न कर सके और स्वतंत्र रीति से उसका विकास न हो सके। ____ साहित्य के इतिहास में कालविभाग कर लेने से उसकी विभिन्न कालों की स्थिति समझने में सुगमता तो अवश्य होती है, परंतु साथ ही यह बात भी न भूल जानी चाहिए कि साहित्य एक वैयक्तिक कला है; और प्रत्येक बड़े साहित्यकार की अपनी वैयक्तिक विशेषताएँ होती हैं। यद्यपि ये विशेषताएँ देश और काल से बहुत कुछ निरूपित होती हैं, तथापि इनमें साहित्यकार के व्यक्तित्व की भी छाप होती है। प्रतिभा- शाली तथा विचक्षण कवि अथवा लेखक कभी कभी स्वतंत्र रीति से वाणी के विलास में प्रवृत्त होते हैं और समाज की साधारण स्थितियों का उन पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। अधिकतर यही देखा जाता है कि जो कवि जितना ही अधिक स्वतंत्र तथा मौलिक विचारवाला होता है, वह समाज की लकीर पर चलना उतना ही अधिक अस्वीकार करता है और उतना ही अधिक यह साहित्य के साधारण प्रवाह से दूर पहुँच जाता है। हिंदी के प्रमुख वीर कविताकार “भूषण" ने देश भर में विस्तृत रूप में व्याप्त भंगार-परंपरा के युग में जिस स्वतंत्र पथ का अवलंबन किया उससे हमारे इस कथन का प्रत्यक्ष रीति से समर्थन होता है। ऐसे अन्य उदाहरण भी उपस्थित किए जा सकते हैं परंतु ऐसा करने की कोई श्रावश्यकता प्रतीत नहीं होती। साहित्य-कला की यही विशेपता देखकर साहित्य के कुछ इतिहासलेखक उसका कालविभाग न करके उसके मुख्य मुख्य कवियों तथा लेखकों को ही कालनायक मान लेते तथा उन्हीं के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हैं। परंतु मेरे विचार से मध्यम पथ का ग्रहण श्रेयस्कर होगा। यह पथ ग्रहण करने से एक ओर तो हम साहित्य पर काल की अनेक घटियों का प्रतिकार स्थितियों का प्रभाव दिखला सकेंगे और दूसरी " ओर साहित्यकारों की वैयक्तिक विशेषताओं का प्रदर्शन भी कर सकेंगे। वास्तव में साहित्य के इतिहास फा सच्चा शान तभी हो सकता है जय विभिन्न कालों की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक श्रादि स्थितियों से उसके संबंध का निरूपण होता जाय, साथ ही उसकी ये विशेषताएँ भी स्पष्ट होती जायँ जो प्रतिभाशाली तथा विचक्षण कवियों और लेखकों से उसे प्राप्त होती हैं। इस पुस्तक में इसी शैली के अनुकरण का प्रयत्न किया जायगा। २२