पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१७४

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भिन्न भिन्न परिस्थितियां १७५ में ही प्राप्त हो सकता है, टूटे फूटे और संघर्षपूर्ण खंड राज्यों में नहीं मिल सकता। इसके अतिरिक्त नवीन यवनशक्ति में जो सजीवता और उत्साह था, उससे यहाँ के वायुमंडल को पक अभिनव चेतना मिली और अनेक क्षेत्रों में नवीन प्रगति का प्रारंभ हुआ। मुसलिम कला के संयोग से भारतीय कला एक नए साँचे में ढली और मुसलमानों की बाहरी "तहजीव" ( शिष्टता ) का भी हम पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ा। साहित्य के क्षेत्र में भी परिवर्तन हुए। अरवी भापा का एक अच्छा साहित्य था, जिसे यहाँ के निवासियों ने थोड़ा बहुत ग्रहण किया। अाज हम साधारण बोल-चाल में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, उसमें मुसलमानों की अरची और फारसी भापाओं के शब्दों का भी कम मेल नहीं रहता। ___जिस समय राजनीतिक क्षेत्र में मुसलमानों का प्रभाव बढ़ रहा था और उनके आक्रमण तथा राज्य स्थापन के कार्य शीघ्रता से चल रहे सामाजिक अवस्था थे, उस समय भारत की धार्मिक परिस्थिति तथा सामाजिक अवस्था में भी परिवर्तन हो रहा था। हम पहले ही कह चुके हैं कि हर्षवर्द्धन के समय से ही बौद्ध धर्म का हास होने लगा था। उस हास के कई कारण बतलाए जाते हैं। परंतु उसकी अवनति का प्रधान कारण बुद्ध के उपदेशों का लोक-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित न हो सकना ही था। वे उपदेश केवल वैयक्तिक साधना के उपयुक्त थे और उन्हें समाज ग्रहण नहीं कर सका। बौद्ध धर्म जिन उच्च आदर्शों पर अधिष्ठित है, उनका पालन साधारण जनता न कर सकी। तत्कालीन संघों में अनाचार घंढ़ने लगा और स्थविर भी विलासी और धनलोलुप हो गए। यह युद्ध के उपदेशों के सर्वथा विपरीत था। वुद्ध ने जिस सरल और त्यागपूर्ण जीवन का आदर्श स्थापित किया था, वह उनके अनुयायियों में प्रतिष्टित न हो सका। उसी अवसर पर क्षत्रिय नृपतियों की उग्र मनोवृत्तियों के सामने बौद्ध अहिंसावाद ठहर न सका और उसके अनुयायी कम होने लगे। ऐसी परिस्थिति में महात्मा शंकर का आविर्भाव हुश्रा, जिनकी तीन विवेचन- शक्ति और श्रद्भुत ज्ञान का सहारा पाकर हिंदू धर्म नव जीवन प्राप्त फरके जाग उठा। शंकर स्वामी के प्रसिद्ध दिग्विजय के फल-स्वरूप बौद्ध धर्म का समस्त उत्तर भारत से उन्मूलन हो गया और उसे विहार के कुछ विहारों में ही शरण लेनी पड़ी। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के मध्य में जय मुसलमानों का अाक्रमण विहार पर हुश्रा तय रदे सहे यौद्ध भी लुप्त हो गए और इस प्रकार इस देश में उस धर्म का