पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८५

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१८६ हिंदी साहित्य चिचारों पर आघात नहीं किए गए, पर विजेता की शक्ति का प्रभाव विजितों पर कैसे न पड़ता। वेलेजली के समय में सात देशी भापात्रों में घाइबिल का अनुवाद निकाला गया। सं० १८७० में लाइसेंस लेकर प्रचारकार्य के लिये पादरियों को लाने की अनुमति मिल गई। उसी समय कलकत्ते में एक विशप और चार पादरी नियुक्त हुए। पादरियों ने पुस्तके प्रकाशित करके तथा उपदेशों श्रादि के द्वारा प्रचार-कार्य करके और साथ ही प्रलोभन भी देकर ईसाई मत को फैलाने की चेष्टा की। लाई टिक ने सतीप्रथा बंद कर दी। धीरे धीरे अँगरेजी शिक्षा का प्रचार होने लगा। वैटिक ने अँगरेजी का प्रचार सरकारी नीति का एक अंग बना दिया। मेकाले ने कहा कि अँगरेजी शिक्षा के प्रचार से देश में एक भी मूर्तिपूजक याकी न रह जायगा। संस्थत और फारसी का निरादर किया जाने लगा। उर्दू अदालती भाषा बन गई और हिंदी को राजाश्रय न मिल सका। अँगरेजी के साथ साथ इस देश में पाश्चात्य भावों का भी प्रवेश हुआ। जनता पर अँगरेजों की रहन-सहन और श्राचार-विचार का भी बहुत कुछ प्रभाव पड़ा। नए आवेश में देश की बहुत सी अच्छी बातें भी बुरी और सभ्यतापूर्ण मानी जाने लगीं। इस प्रकार देश पर अँगरेजों की मानसिक विजय भी चलती रही जिसने राजनीतिक विजय को खूब दृढ़ बना दिया। उत्तर काल देशी राज्यों के प्रति अँगरेजों की नीति और ईसाई मत के प्रचार का फल यह हुआ कि सं० १६१४ में भारतीयों की ओर से प्रयल विद्रोह निजामति की आग धधक उठी। परंतु संघटन के प्रभाव " और शक्ति की विष्टंखलता के कारण विद्रोह सफल न हो सका। परिणाम स्वरुप सं० १६१५ से भारत ब्रिटिश सामाज्य में मिला लिया गया और कंपनी का राज्य उठ गया। उत्तरी और दक्षिणी भारत का भेद मिट गया और सारे देश में एक प्रकार की शासननीति काम में लाई जाने लगी। महारानी विक्टोरिया की प्रसिद्ध घोषणा से सरकारी नौकरियों में जाति-भेद उठा देने, धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने और देशी नरेशों के अधिकार बनाए रखने का वचन दिया गया। अँगरेजी शिक्षा के लिये यूनीवर्सिटियाँ स्थापित की गई जिनसे राजनीतिक भावों की जागर्ति हुई और थोड़ा बहुत शिक्षा प्रचार भी हुआ, पर अधिकतर अँगरेजी रीति-नीति को स्थापना को ही सहायता मिली।