पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उत्तर मध्य काल २०२ हिंदी साहित्य भुजजी का विशाल मंदिर वहाँ के स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण तो है ही, वे हिंदू स्थापत्य में भी एक उच्च स्थान के अधिकारी हैं। वीरसिंह- देवजी की छतरी तथा उनके महल भी वास्तुकला के बड़े सुंदर निदर्शन है। उनका दतियावाला महल तो सचमुच अद्वितीय है। यहाँ की इमारतों में मुसलमानों का प्रमाव बहुत कम, प्रायः नहीं के बरायर, पड़ा। इनमें व्यर्थ अलंकरणों के प्रभाव से एक प्रकार की सादगी श्रा गई है जिससे इनके भारतीय गृहस्थ के शुचितम तथा सुदरतम श्रावास होने का आभास मिलता है। अकबर की तुलना में यद्यपि ये चीर बँदेले कुछ भी न थे, फिर भी अपनी इमारतों के विचार से ये उससे टक्कर लेते हैं। शाहजहां के ताजमहल में मुगल स्थापत्य अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँच गया है। यहीं से एक नवीन युग का श्रारंभ होता है जिसे हम ___ ह्रास का युग कह सकते हैं। यों तो शाहजहाँ के न्य काल समय से ही मुसलमानों का धार्मिक कट्टरपन जोर पकड़ रहा था, परंतु उसके उत्तराधिकारी औरंगजेच की नृशंसता तो इतिहास-प्रसिद्ध ।हुई। पुर्तगाली मंदिरों को तुड़वाकर शाहजहाँ ने जिस मनोवृत्ति का परिचय दिया था, औरंगजेब ने जीवन- पर्यंत उसकी पुष्टि की। ऐसी अवस्था में ललित कलाएँ उन्नति नहीं कर सकती थीं। औरंगजेब की बनवाई हुई इमारतों में अधिकांश मस्जिदें तो मंदिरों को तोड़कर बनी हैं। उनमें एक प्रकार की धर्वरता, रुखाई तथा उजाड़पन सा निदर्शित होता है। शाहजहाँ के समय के सुंदर स्थापत्य को उसने ऐसा रूप दिया है, मानों उसकी खाल खिंचवा ली हो। उसकी इमारतों में काशी के गंगा तट पर बनी वह मस्जिद है जो विंदुमाधव के मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। यह अब भी उसी पुराने नाम "माधवराय का घौरहरा" से पुकारी जाती है। दक्षिण में उसने अपनी वेगम का मकयरा वनवाने में ताज की नकल की, पर उसमें कुछ भी सफलता नहीं मिली। औरंगजेब के पीछे मुगलों की कोई विशेष प्रसिद्ध इमारत नहीं बनी। फेवल दूसरे शाह आलम ने अहमदावाद (गुजरात) में कुछ इमारतें बनवाई जिनमें जैन-मंदिर- निर्माण विधि का अनुकरण किया गया। जैनों की मंदिर-निर्माण-कला पूर्ववत् ही बनी रही, उसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। जिस प्रकार हिंदी साहित्य की गार-परंपरा के बीच में भूपण का उदय हुश्रा था, जिनकी वाणी में अद्भुत अाज तथा जातीयता का प्रसार हुआ, उसी प्रकार औरंगजेब की नृशंसता से नष्ट होती हुई वास्तु- कला को भी मराठों तथा सिखों ने पुनरुज्जीवित करने का प्रयास किया