पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२०३

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२०४ हिंदी साहित्य में वे इमारतें गिनी जा सकती है जिनमें भारतीय स्थापत्य की राजपूत शैली के पुनरुत्थान का प्रयास किया गया है और मनोहरता पर विशेष ध्यान रखा गया है। इसके अंतर्गत काशी विश्वविद्यालय, स्वर्गीय महादेवप्रसाद जायसवाल का मिर्जापुरवालो मकान, पटना म्यूजियम, ग्राउस साहव का घनवाया हुआ घुलंदशहर का टाउनहाल, मथुरा का फाटक, नई दिल्ली की कुछ इमारतें गिनी जा सकती है। प्रत्येक प्रकार की कला पर वर्तमान युग के भावों और विचारों का प्रभाव पड़े विना नहीं रह सकता। प्राचीन शैली के साथ इन नए भावों तथा विचारों का सामंजस्य और सम्मिश्रण ही श्रेयस्कर है जिसमें प्राचीन परंपरा बनी रहे और साथ ही नवोत्थित श्रावश्यकतानों की पूति हो।। सारांश यह है कि जिस प्रकार धार्मिक, सामाजिक, नैतिक, साहित्यिक श्रादि स्थितियों पर यरोपीय सभ्यता तथा संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट देख पड़ता है, उसी प्रकार यहाँ के स्थापत्य पर भी उसकी छाप दृष्टिगोचर होती है। जैसे काशी विश्वविद्यालय की इमारतों में राजपूत और मुगल स्थापत्य का विशेष अनुकरण करने की चेष्टा की गई है, साथ ही खिड़कियों तथा दरवाजों में पाश्चात्य शैली का अनुकरण किया गया है। कुछ कलाविद इस अनुकरण में भावना या कल्पना का अभाव पतला सकते हैं। पर इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि अय प्राचीन कला के उद्धार तथा भारतीय श्रादर्शों के अनुसार नवीन विकास की योजना होने लगी है। काशी विश्वविद्यालय की इमारतों में यह विकास प्रत्यक्ष देख पड़ता और चित्ताकर्षक सिद्ध होता है। मूर्ति निर्माण में चंबई के म्हातरे ने अच्छी ख्याति पाई है। दो एक अन्य महाराष्ट्र तथा बंगाली सज्जन भी कार्यक्षेत्र में अग्रसर हो रहे है, परंतु प्राचीन मूर्तिकला की आत्मा को सामयिक शरीर देने का कार्य श्रय तक विधिवत् प्रारंभ नहीं हुश्रा है। चित्रकला चित्रकला का आधार कपड़े, कागज़, लकड़ी, दीवार नादि का चित्रपट है जिस पर चित्रकार अपनी कलम या फॅची की सहायता से भिन्न मिन्न पदार्थो या जीवधारियों के प्राकृतिक रूप, रंग और श्राकार श्रादि का अनुभव कराता है। मूर्तिकार की अपेक्षा उसे मूर्त आधार का कम श्राश्रय रहता है। इसी से उसे अपनी कला का सौदर्य दिखाने के लिये अधिक कौशल से काम करना पड़ता है। वह अपनी कलम या फॅची से समतल या सपाट सतह पर स्थूलता, कृशता, बंधु-