पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२१८

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२१५ ललितकलाओं की स्थिति साथ तत्कालीन विलासिता का चित्र भी उस काल की रचनाओं में मिलता है। भाषा की तत्कालीन रूक्षता भी एक प्रकार की कर्कशता का ही बोध कराती है। उस काल की वास्तुकला और मूर्तिकला को पहले लीजिए। शैव और शाक्त मतों की उन्नति थी, इसलिये शिव- मंदिरों में सबसे अधिक मौलिकता देख पड़ी, अन्य मंदिर उनके अनु- करण में बनाए गए। मूर्तियों में अलंकरण बढ़ रहे थे और भाव-भंगी कम हो रही थी। यह तत्कालीन जनता की बाह्य भंगारप्रिय तथा गंभीर अनुभूतिहीन चित्तवृत्ति का सूचक है। चित्रकला भी बहुत कुछ ऐसी ही रही । प्राकृतिक और अपभ्रंश ग्रंथों में चित्र-रचना के जो उल्लेख मिलते हैं, वे उस काल के पूर्व के हैं। उस काल की प्रधान गुजराती चित्रण-शैली का पतन हो रहा था, केवल जैनों में उसका थोड़ा बहुत प्रचार और उन्नति हुई थी। संगीत में आवश्यकता से अधिक संलग्न रहने के कारण राजपूतों की शक्ति क्षीण पड़ रही थी। आधुनिक कर्णाटकी संगीत की मूल शैली का उस समय अच्छा प्रचार था। हिंदू और मुसलमानों के संघर्ष के उपरांत दोनों जातियों में भावों और विचारों का आदान प्रदान होने लगा। साहित्य में इसका सबसे मुख्य प्रमाण कवीर और जायसी आदि की वाणी है। परंतु साहित्य में हिंदू और मुसलिम मतों का सम्मिश्रण कुछ देर से देख पड़ता है। अन्य कलाओं में मुसलमानी प्रभाव कुछ पहले से ही पड़ने लगा था। धीर- गाथा फाल में मूर्तियों की अधोगति का कारण मुसलमानों का मूर्ति- विद्रोह था। देहली की मुसलमानी इमारतों में भारतीय शैलियाँ स्वीकृत की गई और हिंदू मंदिरों के निर्माण में कुछ मुसलिम प्रादर्श श्रा मिले। परंतु संगीत में तो इन दोनों जातियों के योग से अभूतपूर्व परिवर्तन हुश्रा। इस परिवर्तन के विधायक संगीताचार्य श्रमीर खुसरो थे, जो . श्राधुनिक खड़ी बोली हिंदी के श्रादि श्राचार्य माने जाते हैं। हिंदी साहित्य का भक्तिकाल उसके चरम उत्कर्ष का काल था। भापा को प्रौढ़ता के साथ विचारों की व्यापकता और जीवन की गंभीर समस्याओं पर ध्यान देने का यही समय था। विशाल मुगल साम्राज्य के प्रधान नायक अकवर के राजत्वकाल में यह संभव न था कि साहित्य के विकास के साथ सभी ललित कलाओं का विकास न होता। जो काल साहित्य में सूर और तुलसी को उत्पन्न कर सका था वही काल कलाओं को सामूहिक उन्नति का था। अकयर की सामंजस्य वृद्धि और उदारता की स्पष्ट छाप फतहपुर सिकरी की इमारतों में तो देख ही {पड़ती है, वह तानसेन श्रादि प्रसिद्ध संगीतज्ञों को प्राविष्टत संगीत-