पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२२१

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२१८ • हिंदी साहित्य प्राप्य हैं। हेमचंद्र के प्रसिद्ध व्याकरण में नागर अपभ्रंश के जो उदा. हरण मिलते हैं, उनमें हिंदी के प्राथमिक स्वरूप की झलक दिसाई देती है। उनका व्याकरण विक्रम के बारहवें शतक का है। हेमचंद्र के इन उदाहरणों को हम उनकी सम-सामयिक रचनाएँ न मानकर कुछ पहले की मानेंगे, क्योंकि ये उदाहरण तो उद्धरण मात्र है; और अधिकतर उद्धरण अपने से प्राचीन लेखकों की कृतियों से ही लिए जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि हिंदी की उत्पत्ति अपभ्रश काल के समाप्त होते ही विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के लगभग हुई होगी। जिस समय अप- भ्रश साहित्य अपने श्रासन से क्रमशः च्युत हो रहा था, उस समय हिंदी संभवतः उस आसन को प्राप्त करने के लिये उन्मुख हो रही थी। अतएव हिंदी भाषा के बोल-चाल के प्रयोग के प्रारंभ तथा उसके साहित्यनिर्माण में प्रयुक्त होने में अवश्य ही कुछ अंतर रहा होगा। ग्यारहवीं शताब्दी से हिंदी साहित्य की जोखला चली, यह बीच में कहीं दूदी नहीं, घरावर अब तक चली चलती है। ऐतिहासिक अनुसंधान से अब तक इस युग को जितनी पुस्तकों का पता लगा है, एक तो उनकी संख्या बहुत थोड़ी है, और दूसरे उनमें . प्रक्षिप्त अंश की इतनी अधिकता है कि तत्कालीन अथा का अभाव रचनाओं को पीछे की रचनाओं से अलग करना कठिन ही नहीं वरन् कभी कभी तो सर्वथा असंभव हो जाता है। कुछ पुस्तकों में तो इतिहास की तिथियों तथा घटनाओं का इतना अधिक विरोध मिलता है कि उन्हें सम-सामयिक रचना मानने में बहुत ही असमंजस होता है। इन पुस्तकों की भाषा भी इतनी बे-ठिकाने और अनियमित है कि तथ्य-निरूपण में उसकी भी सहायता नहीं ली जा सकती। ऐसी अवस्था में हमको बहुत कुछ अनुमान पर ही अवलंबित रहना पड़ता है, क्योंकि अन्य उपलब्ध साधनों से हम निश्चित उद्देश तक नहीं पहुँच सकते। जय हम इस बात पर विचार करते हैं कि हिंदी साहित्य के श्रादि काल के लगभग तीन चार वर्षों में इतनी थोड़ी रचनाएँ क्यों हुई तय - एक ओर तो हमारा ध्यान अब तक के अधूरे श्रभाव के कारण १ कारण साहित्यिक अनुसंधान पर जाता है और दूसरी ओर तत्कालीन परिस्थिति पर भी हमारी दृष्टि जाती है। प्राचीन हिंदी पुस्तकों की खोज का काम अब तक विशेष रूप से संयुक्त प्रदेश में ही हुआ है, जहाँ से हिंदी साहित्य के वीरगाथा काल का इतिवृत्त संकलित करने की बहुत कम सामग्री प्राप्त हुई है। इस काल में भारतवर्ष का