पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२५०

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वीरगाथा काल २४६ में भी शीन ही राष्ट्रोन्नायकों का प्रादुर्भाव हुश्रा पर बंगाल के राजा राम- मोहन राय ने पथप्रदर्शक का काम किया। हिंदी-भापा-भापी प्रांतों में स्वामी दयानंद का कार्य सर्वथा प्रशंसनीय था। उनके अन्य विचारों से चाहे कोई सहमत हो या न हो, पर इतना तो मानना ही पड़ता है कि सुपुप्त देश को जगाने और गिरी हुई दशा पर ध्यान दिलाने का उनका प्रयत हमारे लिये कल्याणकर हुआ। स्वामी दयानंद अँगरेजी भाषा के विद्वान् नहीं थे फिर भी उनमें देशोन्नति की उच्चाकांता किसी अँगरेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति से कम नहीं थी और उनका उद्योग तो सर्वाधिक सफल हुथा। हिंदी कविता के क्षेत्र में देशोन्नति संबंधी उत्साहवर्द्धक वीररसात्मक कविता का प्रारंभ स्वामी दयानंद के कुछ काल उपरांत हो गया था; पर धीररस का कोई प्रसिद्ध उल्लेखयोग्य कवि नहीं हुश्रा। इस काल में थोड़ी सी फुटकर रचनाओं में वीरता की अच्छी झलक देख पड़ती है। पर किसी कवि को एकमात्र वीररस की कविता करने का श्रेय नहीं दिया जा सकता। थोड़े समय पीछे महात्मा गांधी के देशव्यापी असहयोग आंदोलन का प्रारंभ हुआ और हिंदी को राष्ट्र- भापा कहलाने का गौरव प्राप्त हुश्रा। जव हिंदी राष्ट्रभाषा मानी गई, तव उसमें राष्ट्र के विचारों और आकांक्षाओं की छाप अवश्य मिलनी चाहिए। इधर थोड़े दिनों से हिंदी में वीर कविता भी प्रारंभ हुई है। ये कविताएँ या तो वर्तमान परिस्थिति में प्रोत्साहन के रूप में हैं, या प्राचीन वीरों की प्रशस्तियों के रूप में हैं। आधुनिक समय के वीर कचिताकारों के संबंध में यह यात स्वीकार करनी पड़ती है कि उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो कविता लिखकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठते हैं, वास्तविक कार्यक्षेत्र में साहसपूर्वक प्रवेश करने की प्रवृत्ति उनमें नहीं दिखाई पड़ती। अाजकल ऐसे कवियों की एक अलग श्रेणी बन गई है, जिन्हें हम साहित्यिको की श्रेणी कह सकते है और जिनका राष्ट्र की वर्तमान कार्य-प्रणाली से केवल मौखिक संबंध है। वीर कवियों के लिये यह वात वांछनीय नहीं। उनकी कविताओं का चिशेप प्रचार न होने का यही कारण है। जनता के हृदय में तो वे ही स्थान पा सकते हैं जो उसके सुख-दुःख के साथी हों, उसकी स्थिति अपनी आँखों से देखते और समझते हों। फविता द्वारा प्रोत्साहन देना तभी सार्थक हो सकता है जब कार्यक्षेत्र में श्राकर वास्त- विक प्रोत्साहन भी दिया जाय। यरोप के श्राधुनिक राष्ट्रोन्नायकों में महात्मा टाल्सटाय ऐसे महापुरुष हो गए हैं जिनकी वाणी और उपदेश स्वयं उन्हीं के कार्यों में चरितार्थ होते थे। वे जो कुछ कहते थे वही