पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३२०

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३२२ हिंदी साहित्य में पिछले खेवे के मुंगारी कवियों को अपने फलुपित उद्गारों के व्यक्त करने का अवसर मिला और जिस प्रकार राधा-कृष्ण के नाम पर नायक नायिकाओं का जमघट तैयार हो गया जिसमें वासनापूर्ण भोगवाणी की ही अभिव्यंजना अधिक हुई, उसी प्रकार वल्लभाचार्य के याधुनिक अनुयायियों में सच्चे स्वर्गीय प्रेम की योर उतना अनुराग नहीं है जितना उस स्वर्गीय प्रेम की लौकिक प्रतिकृति बनाकर अपनी कायवृत्तियों के परितोप की ओर है। चल्लभाचार्य के संप्रदाय का तत्कालीन उत्तर भारत पर नभूतपूर्व प्रभाव पड़ा, और कृष्णभकि के अन्य छोटे बड़े संप्रदाय इसके वेग में विलीन हो गए। ब्रजभाषा के अधिकांश भक कवि इसके अनुयायी थे और जिन कवियों ने इससे अलग रहकर रचना की है, उन पर भी इसका स्पष्ट प्रभाव देख पड़ता है। विषणु स्वामी तथा निवार्क श्रादि के संप्रदाय इसके सामने दब गए। उत्तर में घल्लम संप्रदाय तथा चंगाल में चैतन्य संप्रदाय के कवियों की ही धूम रही, अन्य सव मत फीके पड़ गए। हमारी सम्मति में रामानंद द्वारा श्राविभूत तथा तुलसीदास द्वारा परिपुष्ट रामभक्ति के तत्कालीन हास का एक कारण रुपणभक्ति के इन संप्रदायों का वेगपूर्ण अभ्युत्थान भी है। राधा और कृष्ण की उपा- सना-वारणी सारे उत्तर भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक गूंज उठी, जनता सब कुछ भूलकर उस सरस स्रोत में वह चली। वल्लभाचार्य के शिष्यों में सर्वप्रधान, सूरसागर के रचयिता, हिंदी के श्रमर कवि महात्मा सूरदास हुए जिनकी सरस पाणी से देश के असंख्य सूखे हृदय हरे हो उठे और भग्नाश जनता सूरदास को जीने का नवीन उत्साह मिला। उनका जन्म- संवत् लगभग १५४० था। श्रागरा से मथुरा जानेवाली सड़क के किनारे रुनकता नामक गाँव में इनकी जन्मभूमि थी। चौरासी वैष्णवों की वार्ता तथा भक्तमाल के साक्ष्य से ये सारस्वत ब्राह्मण ठहरते हैं, यद्यपि कोई कोई इन्हें महाकवि चंद बरदाई के वंशज भाट कहते हैं । इनके अंधे होने के संबंध में यह प्रवाद प्रचलित है कि चे जन्म से अंधे थे; पर एक बार जव चे कुएं में गिर पड़े थे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए थे और वे दृष्टि-संपन्न हो गए थे। परंतु उन्होंने कृमण से यह कह- कर अंधे बने रहने का वर मांग लिया कि जिन आँखों से भगवान् के दर्शन किए, उनसे अब किसी मनुष्य को न देखें। इस प्रवाद का अाधार उनके स्कूटों को एक टिप्पणी है। इसे असत्य न मानकर यदि एक प्रकार का रूपक मान लें तो कोई हानि नहीं। सूर वास्तव