पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३४९

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रीति काल ३४६ समझना ही है। हाँ, जहाँ कहीं हृदय की प्रेरणा से रचना की गई है, वहाँ न तो क्लिटता है और न वाह्य चमत्कार। संस्कृत से पूर्ण परिचित होने के कारण इनकी भाषा संस्कृतमिश्रित और साहित्यिक है। राज- दरवार में रहने के कारण इनमें वाग्वैदग्भ्य बहुत अधिक था, इसलिये इनके कथोपकथन अच्छे हुए हैं। वैभव और तेज-प्रताप का घर्णन करने में इन्हें अद्वितीय सफलता मिली है। इनकी कृतियों में कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचंद्रचंद्रिका आदि मुख्य हैं। यद्यपि केशव के पहले भी कृपाराम, गोप, मोहनलाल श्रादि ने रीति साहित्य के निर्माण का प्रारंभ किया था, पर उनकी रचनाएँ केशवदास के सर्वतोमुख प्रयास के सामने एकांगी हो गई हैं। रीति काल के इन प्रथम श्राचार्य केशवदास का स्थान हिंदी में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्हें हृदयहीन कहकर संबोधित करने में हम उनके प्रति अन्याय करते हैं। क्योंकि एक तो उनकी हृदयहीनता जानी समझी हृदयहीनता है, और फिर अनेक स्थलों में उन्होंने पूर्ण सहृदय होने का परिचय दिया है। जिस कवि की रसिकता वृद्धावस्था तक धनी रही, उसे हृदयहीन कहा भी कैसे जा सकता है? यह यात अवश्य है कि केशवदास उन कविपुंगवों में नहीं गिने जा सकते जो एक विशिष्ट परिस्थिति के निर्माता हों। वे तो अपने समय की परिस्थिति द्वारा निर्मित हुए है और उसके प्रत्यक्ष प्रतिबिध हैं। इनमें चिंतामणि, भूपण, मतिराम तथा जटाशंकर थे। कुछ लोगों फी सम्मति में वे सब भाई नहीं थे, और विभिन्न कालों के कविताकार त्रिपाठी-बंधु र था थे; परंतु जनश्रुति के आधार पर शिवसिंह सेंगर 3 आदि ने इन्हें सगे भाई स्वीकार किया है। वास्तव में ये तिकांपुर (कानपुर) के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे और सम- फालीन कवि तथा सगे भाई थे । ____चिंतामणि सयसे बड़े थे। इन्होंने काव्यविवेक, कविकुलकल्पतरु, काव्यप्रकाश तथा रागायण श्रादि ग्रंथ बनाए। नागपुर के तत्कालीन नृपति मकरंदशाह के दरबार में रहकर इन्होंने छंदविचार ग्रंथ की रचना की और उसे उन्हें हो समर्पित किया। चिंतामणि की रीति- रचना के संबंध में सबसे महत्त्व की बात यह है कि महाकवि श्राचार्य केशवदास ने हिंदी में जिस अलंकार-संप्रदाय का सृजन किया था, उसे छोड़कर इन्होंने सुंदर रसपूर्ण रचना की जिसमें अलंकारों को उपयुक्त स्थान दिया गया। इस प्रकार वे हिंदी के दूसरे प्रधान रीति-संप्रदाय के प्रायः सर्वप्रथम कवि ठहरते हैं। भापा और भाव दोनों ही दृष्टियों से प्रशंसनीय कहे जा सकते है। तत्कालीन मुगल सम्राट शाहजहाँ