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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१०१

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'मइ' मइँ हो जाता है। यथा—'ढोला मइँ तुहुँ वारिया, इसी मइँ से हिन्दी के मैं की और बहुवचन "अम्हेहि" अथवा "अम्हे" से हम की उत्पत्ति बतलाई जाती है। मृच्छ कटिक नाटक में "अस्मद्" का प्राकृत रूप आम्हि भी मिलता है, कहा जाता है इसी आम्हि से बँगला के आमि की उत्पत्ति हुई है[] बँगला के आमि से हमारे मैं और हम की बहुत कुछ समानता है। आगे चल कर इसी मैं से "मुझे" "मुझको" और "मेरा" आदि और हम से "हमको और हमारा" आदि रूप बनते हैं। एक विद्वान् की सम्मति है कि अहम् से 'हम' की उत्पत्ति वैसे ही है, जैसे के गिर जाने से अहै से है की।

मध्यम पुरुष का तू, तुम सँस्कृत् युष्मत् से बनता है। प्राकृत में प्रथमा का एकवचन त्वं और तुवं और बहुवचन 'तुम्ह' होता है। चतुर्थी और षष्टी का एकवचन "तुम्हं" बनता है[] इन्हीं के आधार से तू और तुम की उत्पत्ति हुई है। बँगला में तुमको तुमि लिखते हैं, दोनों में बहुत अधिक समानता है, कहा जाता है कि इस तुमि की उत्पत्ति भी 'तुम्हि' से ही हुई है[] इसी तुमसे "तुझ" और तुम्हारा एवं तेरा आदि रूप आगे चल कर बने। हिन्दी में अबतक "तुम्ह" का प्रयोग भी होता है। मध्यम पुरुष के लिये आप शब्द भी प्रयुक्त होता है, इस शब्द का आधार संस्कृत का 'आत्मन्' शब्द है। इसका प्राकृत रूप अप्पा और अप्पि है[] इसी से आप शब्द निकलता है, बँगला में आप के स्थान पर आपनि और बिहार में आपुन बोला जाता है, जिसमें, आत्मन् की पूरी झलक है।

अन्य पुरुष के शब्द वह और वे संस्कृत के अदस्) शब्द से बने हैं यह कुछ लोगों की सम्मति है। प्रथमा एक वचन में इसका प्राकृतरूप असु और बहुवचन में अमू होता है।[] संस्कृत के प्रथमा एकवचन में असौ होता है, प्राकृत में यही असौ, असु होजाता है। अपभ्रंश में प्रायः वह के स्थान पर मु प्रथमा एकवचन में आता है यथा "अन्नु सुघण थण हारु"


  1. देखिये 'बंगभाषा और साहित्य' पृ॰ २५।
  2. देखिये 'पालिप्रकाश' पृ॰ १२२।
  3. देखिये 'बंगभाषा और साहित्य' पृ॰ २६।
  4. देखिये 'बंगभाषा और साहित्य' पृ॰ २४।
  5. देखिये 'पालिप्रकाश' पृ॰ १४७।