पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१०५

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कहते थे कि वैदिककाल से लेकर आज तक आर्यभाषा की जो सर्वसम्मत रीति प्रचलित है, उसका त्याग न होना चाहिये। प्रकृति से प्रत्ययों और विभक्तियों को अलग करने से पहले तो शब्दों का अयथा विस्तार होता है, दूसरे उनके स्वरूप पहचानने और प्रयोग में बाधा उपस्थित होती है। वियोगवादी कहते संयोग जटिलता का कारण है, संयुक्त वर्ण जिसके प्रमाण हैं। इसलिये सरलता जन साधारण की सुबिधा और बोलचाल पर ध्यान रखकर जो नियम आजकल इस बारे में प्रचलित हैं, उनको चलते रहना चाहिये । जीत वियोग वादियों की ही हुई अब भी कुछ लोग प्रकृत और प्रत्ययों को मिलाकर लिखते हैं, परन्तु साधारणतया वे अलग ही लिखे जाते हैं। कहा जाता है हिन्दी भाषा में यह प्रणाली फ़ारसी भाषा से आई है। फ़ारसी में प्रायः इस प्रकार के शब्द अलग लिखे जाते हैं। और उर्दू उन्हीं अक्षरों में लिखी जाती है जिन अक्षरों में फ़ारसी । इस लिये जैसे हिन्दी के क्रिया आदि उर्दू में लिखे जाते हैं, वैसे ही हिन्दी में भी लिखे जाने लगे । १ इस कथन में बहुत कुछ सत्यता है, परन्तु मैं इस विवाद में पड़ना नहीं चाहता। मेरा कथन इतना ही है कि विभक्तियां अथवा प्रत्यय प्रकृति के साथ मिलाकर लिखे जायें या न लिखे जायें। परन्तु ये ही हिन्दी भाषा के वे सहारे हैं, जिनके आधार से वह संसार को अपना परिचय दे सकती है । इस प्रकरण में मैंने जिन विभक्तियों, सर्वनामों, प्रत्ययों, और क्रियाओंका वर्णन किया है. वे हिन्दी भाषाके शब्दों, वाक्यों, और उनके अवयवों के ऐसे चिन्ह हैं, जो उसको अन्य भाषाओं से अलग करते हैं, इसलिये उनका निरूपण आवश्यक समझा गया ।

१-दे० ओरिजन एण्ड डेवलपमेन्ट आँफ दि बंगला लेंग्वेज पृ० १२२ ।