पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१०७

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का व्यवहार शुद्ध रूप में होगा, तब तक वह तत्सम है। प्राकृत में हस्त का रूप हत्थ हो जाता है और हत्थ हिन्दीमें हाथ हो जाता है। हिन्दी भाषा की रीढ़ ऐसे ही शब्द हैं, यह स्पष्ट तद्भव है। परन्तु यदि हत्थ के रूप में ही हिन्दी में लेलिया जाता तो भी तद्भव ही कहलाता । प्राकृत में लोचन, लोयन, बन जाता है । और हिन्दी में इसी रूप में गृहीत होता है. थोड़ा भी नहीं बदलता, तो भी तद्भव ही कहलाता है। क्योंकि लोचन से उत्पन्न होने के कारण लोयन में तद्भवता ( उत्पन्न होने का भाव) मौजूद है। तत्सम शब्द के आदि और मध्य का हलन्त वर्ण प्रायः हिन्दी में सस्वर हो जाता है, प्राकृत और अपभ्रंश में भी इस प्रकार का प्रयोग पाया जाता है, क्यों कि सुखमुखोच्चारण के लिये जन साधारण प्रायः संयुक्त वर्णो के हलन्त वर्णों को सस्वर कर देता है, संस्कृत में इसको युक्तविकर्ष कहते हैं, ऐसे ही शब्द अर्ध तत्सम कहलाते हैं। धरम, करम, किरपा, हिरदय, अगिन, सनेह आदि ऐसे ही शब्द हैं जो धर्म, कर्म, हृदय, अग्नि, स्नेह के वे रूप हैं जो जनता के मुखों से निकले हैं। अवधी और ब्रजभाषा में ऐसे शब्दों का अधिकांश प्रयोग मिलता है। इन भाषाके कवियों ने भी भाषा को कोमल करने के लिये ऐसे कुछ शब्द गढ़े हैं । परन्तु खड़ी बोलीके कवियोंका मार्ग बिलकुल उलटा है, वे अर्द्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग करते ही नहीं । हिन्दी का गद्य तो उस को पास फटकने नहीं देता। १ तत्सम २ अर्थ तत्सम और ३ तद्भव के अतिरिक्त हिन्दी भाषा में और एक प्रकार के शब्द पाये जाते हैं इनको ४ देशज कहते हैं । ये देशज वे शब्द हैं जिनके आधार संस्कृत अथवा प्राकृत शब्द नहीं हैं । वे अनार्यो अथवा विजातीय भाषाओं से हिन्दी में आये हैं। जैसे गोड़, टाँग, उर्दू आदि । किसी किसीकी यह सम्मति है कि ऐसे शब्दों के विषय में यह ठीक पता नहीं चलता, कि वे कहां से आये, इसलिये वे देशज मान लिये गये। कुछ अनुकरणात्मक शब्द भी हिन्दी में हैं जैसे खटखटाना, गड़वड़ाना, बड़वड़ाना, फड़फड़ाना, चटपट, झटपट, खटपट इत्यादि। कहा जाता है ऐसे कुल शब्द देशज हैं, परन्तु अनेक भाषा मर्मज्ञोंने इस प्रकार के बहुत से शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत से ही बतलाई है । सोधा मार्ग देशज शब्दों के निर्धारण का यही ज्ञात होता है कि जो