पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१४४

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इस गीति-काव्यका गान ग्रामों के चौपालों और नगरों के जनाकीर्ण स्थानों में होता है वह किसके हृदय में वीरता का संचार नहीं करता? इसके रचे गीतों में महोबा के राजा के दो प्रधान वीर आल्हा और ऊदनके वीर कम्माों का बड़ा ही ओजमय वर्णन है। यद्यपि यह बात बड़ी ही मर्म्म-भेदी है कि इन दोनों वीरों के वीर कम्मौं की इति श्री गृहकलह में ही हुई। महोबे के प्रसिद्ध शासक परमाल और उस काल के प्रधान क्षत्रिय भूपाल पृथ्वीराज का संघर्ष ही इस गीति-काव्य का प्रधान विषय है। यह वह संघर्ष था कि जिसका परिणाम पृथ्वीराज का पतन और भारतवर्ष के चिर-सुरक्षित दिल्ली के उस फाटक का भग्न होना था जिसमें प्रवेश कर के विजयी मुसल्मान जाति भारत की पुण्य भूमि में आठ सौ वर्ष तक शासन कर सकी। तथापि यह बात गर्व के साथ कही जा सकती है कि जैसा बीररस का ओजस्वी वर्णन इस गीति काव्य में है हिन्दी साहित्य के एक दो प्रसिद्ध ग्रंथों में ही वैसा मिलता है। यह ओजस्वी रचना, कुछ काल हुआ, आल्हा खंड के नाम से पुस्तकाकार छप चुकी है, परन्तु बहुत ही परवत्तिर्त रूप में। उसका मुख्य रूप क्या था इसकी मीमांसा करना दुस्तर है। जिस रूप में यह पुस्तक हिन्दी साहित्य के सामने आई है उसके आधार से इतना ही कहा जा सकता है कि इस कवि का उस काल की साहित्यिक हिन्दी पर, जैसा चाहिए वैसा, अधिकार नहीं था। प्राप्त रचनाओं के देखने से यह ज्ञात होता है कि उसमें बुन्देलखण्डी भाषा का ही वाहुल्य है। हिन्दी भाषा के विकास पर उससे जैसा चाहिये वैसा प्रकाश नहीं पड़ता, विशेष कर इस कारण से कि मौखिक गीति-काव्य होने के समय के साथ साथ उसकी रचना में भी परिवर्तन हाता गया है। किन्तु हिन्दी भाषाके आरम्भिक काल, में जो संघर्ष यहां के विद्वेष-पूर्ण राजाओं में परस्पर चल रहा था उसका यह ग्रंथ पूर्ण परिचायक है। इसी लिये इस कवि की रचनाओं की चर्चा यहां की गई। मैं समझता हूं कि जितने ग्रामीण गीत हिन्दी भाषा के सर्व साधारण में प्रचलित हैं उनमें जगनायक के आल्हाखंड को प्रधानता है। उसके देखने से यह अवगत होता है कि सर्व साधारण की बोलचाल में भी कैसी ओजपूर्ण रचना हो सकती है। इस उद्देश्य से भी इस कवि की चर्चा आवश्यक