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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१४८

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गया। आरम्भिक काल में कुछ ऐसे ग्रन्थ भी लिखे गये हैं जिनका सम्बन्ध वीरगाथाओं से, नहीं है, परन्तु प्रथम तो उन ग्रंथोंका नाम मात्र लिया गया है, दूसरे जो ग्रन्थ उपलब्ध हैं वे थोड़े हैं और उनकी प्रायः रचनायें ऐसी हैं जो उस काल की नहीं, वरन माध्यमिक काल की ज्ञात होती हैं। इसलिये उनका कोई उद्धरण नहीं दिया गया। अन्त में मैंने जैन सूरियों की जो तीन रचनायें उद्धृत की हैं वे वीर रस की नहीं हैं। तथापि मैंने उनको उपस्थित किया केवल इस उद्देश्य से कि जिस में यह प्रगट हो सके कि वीर-गाथा सम्बन्धी रचनाओं में ही नहीं आरम्भिक काल में ओज लाने के लिये प्राकृत और अपभ्रंश शब्दों का प्रयोग किया गया है, वरन अन्य रचनाओं में भी इस प्रकार के प्रयोग मिलते हैं जो यह बतलाते हैं कि उस काल की वास्तविक भाषा वही थी जो विकसित होकर अपभ्रंश से हिन्दी भाषा के परवर्ती रूप की ओर अग्रसर हो रही थी।

 


तीसरा प्रकरण।
हिन्दी साहित्य का माध्यमिक काल।

हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल, मेरे विचार से चौदहवीं ईस्वी शताब्दी से प्रारम्भ होता है। इस समय विजयी मुसल्मानों का अधिकार उत्तर भारत के अधिकांश विभागों में हो गया था और दिन दिन उनकी शक्ति वर्द्धित हो रही थी। दक्षिण प्रान्त में उन्होंने अपने पांव बढ़ाये थे और वहां भी विजय-श्री उनका साथ दे रही थी। इस समय मुसल्मान विजेता अपने प्रभाव विस्तार के साथ भारतवर्ष की भाषाओं से भी स्नेह करने लगे थे। और उन युक्तियों को ग्रहण कर रहे थे जिनसे उनके राज्य में स्थायिता हो और वे हिन्दुओं के हृदय पर भी अधिकार कर सकें। इस सूत्र से अनेक मुस्लिम विद्वानों ने हिन्दी भाषा का अध्ययन किया, क्योंकि वह देश-भाषा थी। मुसल्मानों में राज्य प्रचार के साथ अपने