पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१५०

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प्रान्त में सूफियों के धर्म-प्रचार के विषय में अपने (मेडिवल इंडिया) नामक ग्रन्थ में जो कुछ लिखा है उसमें इस समय का सच्चा चित्र अंकित है। अभिज्ञता के लिए उसका कुछ अंश मैं यहां उद्धृत करता हूं।[१]

"चौदहवीं शताब्दी बंगाल में मुसल्मान फ़कीरों की क्रियाशीलता के लिये प्रसिद्ध थी। पैण्डुआ में अनेक प्रसिद्ध और पवित्र सन्तों का निवास था इसी कारण इस स्थान का नाम हज़ारत पड़ गया था।

अन्य प्रसिद्ध सन्त थे अलाउल हक़ और उनके पुत्र मूर कुतुबुलआलम। अलाउलहक़ शेख निज़ामुद्दीन औलिया का शिष्य था। बंगाल का हुसेन शाह (१४९३-१५१९ ई॰) सत्यपीर नामक एक नये पंथ का प्रवर्तक था जिसका उद्देश्य था हिन्दुओं और मुसलमानों को एक कर देना। सत्यपीर एक समस्त शब्द है, जिसमें सत्य संस्कृत का और पीर अरबी भाषा का शब्द है।"

यह एक प्रान्त की अवस्था का निदर्शन है। अन्य विजित प्रान्तों की भी ऐसी ही दशा थी। उस समय सूफी सिद्धान्त के मानने वाले महात्माओं के द्वारा उनके उद्देशों का प्रचुर प्रचार हो रहा था, और वे लोग दृढ़ता के साथ अपनी संस्थाओं का संचालन कर रहे थे। यह धार्मिक अवस्था की बात हुई, राजनीतिक अवस्था भी उस समय ऐसी ही थी साम दाम दण्ड विभेद से पुष्ट हो कर वह भी कार्य-क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार अनेक सूत्रों से कर रही थी। मैं पहले लिख आया हूं कि जैसा वातावरण होता है साहित्य भी उसी रूप में विकसित होता है। माध्यमिक काल के साहित्य


  1. The Fourteenth century was remarkable for the activity of the Muslim Faquirs in Bangal,.........There were several saints of reputed sanctity in Pandua. which owing to their presence, came to be called Hazarat.........other noted saints were Alaul Haq and his son Nur Qutbul Alam, Alaul Haq was also disciple of Saikh Nizamuddin Auliya, Husain Shah of Bengal (1493-1519 A. D.) was the founder of a new cult called Satyapir, which aimed at uniting the Hindus and the Muslim Satyapir was compounded of Satya, a Sanskrit word and Pir which is an Arabic word.