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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१६०

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ये फटकारते थे उतना ही वे इनके पीछे दौड़ते थे। लोग वोधिसत्व प्रतिमाओं तथा दूसरे देवताओं की भांति इन सिद्धों को अद्भुत चमत्कारों और दिव्य शक्तियों के धनी समझते थे। ये लोग खुल्लम-खुल्ला स्त्रियों और शराब का उपभोग करते थे। राजा अपनी कन्याओं तक को इन्हें प्रदान करते थे। ये लोग त्राटक या hypnotism की कुछ प्रक्रियाओं से वाक़िफ़ थे। इसी बल पर अपने भोले भाले अनुयाइयों को कभी कभी कोई कोई चमत्कार दिखा देते थे। कभी हाथ की सफ़ाई तथा श्लेषयुक्त अस्पष्ट वाक्यों से जनता पर अपनी धाक जमाते थे। इन पाँच शताब्दियों में धीरे धीरे एक तरह से सारी भारतीय जनता इनके चक्कर में पड़ कर कामव्यसनी, मद्यप और मूढ़ विश्वासी बनगयी थी।"

महात्मा गोरखनाथ ही ऐसे पहले ब्राह्मण हैं जिन्होंने संस्कृत का विद्वान् होने पर भी हिन्दी भाषा के गद्य और पद्य में धार्मिक ग्रन्थ निर्माण किये। जनता पर प्रभाव डालने के लिए उसकी बोलचाल की भाषा ही विशेष उपयोगिनी होती है। सिद्ध लोगों ने इसी सूत्र से बहुत सफलता लाभ की थी, इसलिये महात्मा गोरख नाथ जी को भी अपने सिद्धान्तों के प्रचार के लिए इस मार्गका अवलम्बन करना पड़ा। उनके कुछ पद्य देखिये :—

आओ भाई घरिघरि जाओ गोरखवाला भरिभरि लाओ।
झरै नपारा बाजै नाद, ससिहर सूर न वाद विवाद।१।
पवनगोटिका रहणि अकास, महियल अंतरि गगन कविलास।
पयाल नी डीबी सुन्न चढ़ाई, कथत गोरखनाथमछींद्र बताई।२।
चार पहर आलिंगन निद्रा संसार जाइ विषिया बाही।
उभयहाथों गोरखनाथ पुकारे तुम्हें भूल महारौ माह्याभाई।३।
वामा अंगे सोइया जम चा भोगिया सगे न पिवणा पाणी।
इमतो अजरावर होई मछिंद्र बोल्यो गोरख बाणी॥४॥