पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१७५

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२—माथे तिलकु हथि माला बाना,
लोगनु राम खिलौना जाना।
जउ हउँ बउरा तउ राम तोरा,
लोग मरम कह जानइँ मोरा।
तोरउँ न पाती पूजउँ न देवा,
राम भगति बिनु निहफल सेवा।
सति गुरु पूजउँ सदा मनावउँ,
ऐसी सेव दरगह सुख पावउँ।
लोग कहै कबीर बउराना
कबीर का मरम राम पहिचाना।
३—जब लग मेरी मेरी करै,
तब लग काजु एक नहिँ सरै।
जब मेरी मेरी मिटि जाइ,
तब प्रभु काजु सँवारहि आइ।
ऐसा गियानु बिचारु मना,
हरि किन सुमिरहु दुख भंजना।
जब लग सिंधु रहै बन माहिं,
तब लगु बनु फूलै ही नाहिँ।
जब ही सियारु सिंघ कौ खाइ,
फूलि रही सगली बनराइ।
जीतो बूढ़े हारो तिरै,
गुरु परसादी पारि उतरै।
दास कबीर कहइ समझाइ,
केवल राम रहहु जिउलाइ।