पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२०३

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इन रचनाओं पर सामयिकता की छाप तो लगी ही है। परन्तु उनमें आपको स्वामी रामानन्द जी की महान शिक्षाओं का प्रभाव भी विकसित रूपमें दृष्टिगत होगा। ये रचनायें आपको यह भी बतलायेंगी कि पन्द्रहवीं शताब्दी में हिन्दी भाषा का विकास लगभग एक ही रूप में हुआ। इसके अतिरिक्त इनके देखने से यह भी पता चलेगा कि किस प्रकार इस शताब्दो में निगणवाद और भक्ति रस की धारायं वहीं, जो उत्तरवर्ती काल में विविध रूप में प्रवाहित होकर हिन्दू जाति के सूग्वते धर्म-भाव के पौधों को हरा भरा बनाने में समर्थ हुई।


इसी शताब्दी में पंजाब प्रान्त में गुरु नानक देव का आविर्भाव हुआ। आप बेदी खत्री और अपने समय के प्रसिद्ध धर्म-प्रचारक थे। कुछ लोगों ने इनको कबीर साहब से प्रभावित बतलाया है। किसी किसीने तो उनको इनका शिष्यतक लिख दिया है। किन्तु यह सत्य नहीं है। इस विषय में बहुत वाद-विवाद हो चुका है। मैं उनको यहाँ लिखना वाहुल्य-मात्र समझता हूं. किन्तु यह निश्चित बात है कि कबीर साहब का गुरु नानकदेव पर कुछ प्रभाव नहीं था। प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि कबीर साहब पीर थे और गुरु नानकदेव गुरु। वे एक नवीन धर्म का प्रचार करना चाहते थे और ये हिन्दू धर्म के संरक्षण के लिये यत्नवान थे। इस बात को प्रकट करने के लिये ही उन्होंने महात्मा गोरखनाथ के उद्भावित गुरु नाम का अपने नाम के साथ संयोजन किया था। उनके उपरान्त उनकी गद्दी पर दस महापुरुष बैठे वे दसो गुरु कहलाये । पाँच गद्दीके बाद तो इन गुरुओं ने हिन्दूधर्म की रक्षा के लिये तलवार भी ग्रहण की। इन गुरुओं मे से कईने हिन्दुधर्म बलिबेदी पर अपने को उत्सर्ग भी किया। जब कबीर साहब ने हिंदु धर्म याजका और पंडितों की बुत्मा करने ही में अपना गौरव समझा उस समय गुरुनानकदेव पंडितों को इन शब्दों में स्मरण करते थे:

स्वामी पंडिता तुमदुमती, केहि विधि मिलिये प्रानपती। गुरु नानकदेव की रचनाओं में वेद शास्त्र की उतनी ही मर्यादा दृष्टिगत होती है जितनी एक हिन्दु की कृति में होनी चाहिये। उसके