यथा समय विकसित होकर इस समय जीवित, और कर्मक्षेत्र में उतर कर रातदिन कार्य्यरत हैं, उन्हीं में से एक हमारी हिन्दी भाषा भी है। यह कैसे विकसित हुई, इसमें क्या क्या परिवर्तन हुए, इसकी वर्तमान अवस्था क्या है? और उन्नति पथ पर वह किस प्रकार दिन दिन अग्रसर हो रही है,मैं क्रमशः इन बातों का वर्णन करूंगा। आशा है यह वर्णन रोचक होगा।
दूसरा प्रकरण
हिन्दीभाषा का उद्गम
आदि भाषा कौन है? सृष्टि के आदि में एक ही भाषा थी, अथवा कई। इस समय संसार में जितनी भी भाषायें प्रचलित हैं, उनका मूल स्रोत एक हैं! अथवा भिन्न भिन्न! आजतक इसकी पूरी मीमांसा नहीं हुई। इस समय जितनी भाषायें समाज में प्रचलित हैं, उनमें इण्डो यूरोपियन एवं सैमिटिक भाषा को ही प्रधानता है, इन्हीं दोनों भाषाओं का विस्तार अधिक है, और इन्हीं के भेद उपभेद अधिक पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त हैमिटिक और चीनी भाषा आदि, और भी भाषायें ऐसी हैं, जो भिन्न भिन्न वर्ग की हैं, और जिन में एक का दूसरे के साथ कोई सम्बन्ध नहीं पाया जाता । अब प्रश्न यह होता है, कि इन भाषाओं का आधार एक है या वे स्वतंत्र हैं। क्या मनुष्यों का उत्पत्ति स्थान भिन्न भिन्न है| यदि भिन्न भिन्न है तो क्या भाषायें भी भिन्न भिन्न रीति से ही, भिन्न भिन्न अवसरों पर आवश्यकतानुसार हुई हैं| क्या मनुष्य मात्र एक माँ बाप की ही सन्तान नहीं हैं, यदि हैं तो भाषा भी उनकी एकही होनी चाहिये । जैसे देश काल के अनुसार मनुष्यों में भेद हुआ, वैसे ही काल पा कर भाषा में भी भेद हो सकता है। परंतु आदि में ही मनुष्यों और भाषाओं की भिन्नता उत्पत्ति मूलक नहीं ज्ञात होती । संसार के समस्त धर्म–ग्रंथ एक स्वर से यही कहते हैं कि आदि में एक पुरुष एवं एक स्त्री से ही संसार का आरम्भ हुआ। यह विचार इतना व्यापक है, कि अब तक इसका विरोध सम्मिलित कण्ठ से बलवती भाषा में बहु मान्य प्रणाली द्वारा नहीं हुआ। इसी कारण अनेक विद्वानों की यह सम्मति है, कि सृष्टि के आदि में मनुष्य जाति की उत्पत्ति