पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२१७

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( २०३ ) भक्ति मार्गमें भी बन्धनोंसे मुक्त नहीं होती। और अनेक अवस्थाओंमें उसकी वांछित स्वतंत्रता में बाधा भी पड़ती रहती है। प्रेम पथ इन बन्धनों से मुक्त रहता है। उसमें अपनी सत्ता तो बहुत कुछ सुरक्षित रहती ही है उसकी स्वतंत्रता में भी उतनी बाधा नहीं पड़ती। प्रेमिका प्रेम-पात्र को यथावसर टेढ़ी-मेढ़ी बातें भी कह देती है और दिल खोलकर उपालम्भ देने में भी संकुचित नहीं होती। ऐसा वह प्रेमातिरेक के वश होकर हीकरती है दम्भ अथवा अभिमान से नहीं । यही कारण है कि यह उपासना पद्धति अधिकतर गृहीत हुई और माधुर्य भावना कही गई। आज दिन भारतवर्ष का कौन सा प्रदेश है जिसमें वल्लभाचार्य सम्प्रदाय के मन्दिर नहीं और जिसमें राधा-कृष्ण की मूति विराजमान नहीं ? रामावत सम्प्रदाय भी इस माधुर्य भाव की उपासना से प्रभावित हुआ और उसमेंभी आजकल सखी भाव की सृष्टि होकर यह पद्धति गृहीत हो गई है । भगवान कृष्णचन्द्र जैसे विलक्षण प्रेम स्वरूप प्रेमिक हैं श्रीमतीराधिका वैसी ही प्रेम प्रतिमा । असंख्य ब्रह्माण्ड के अधिप आकाश का जो वण है वही वर्ण प्रेमावातार प्श्री कृष्णचन्द्र का है, जो इस बात का सूचक है कि जो इस रंगमें सच्चे जी से रंगा उसने माधुर्य समुद्र में ही प्रवेश किया, आजन्म उसमें ही निमग्न रहा। श्यामायमाना वसुन्धरा मेंभी वहो छटा दृष्टिगत होती है और विश्वविगमदायिनी रजनी में भी ।वे विश्वरूप हैं, इसलिये सूर्य, शशांक, वहनि नयन हैं; मयूर-मुकुट-मण्डित,बनमाली, एवं गिरिधर भी हैं। ब्रह्माण्ड की चोटी के ध्वन्यात्मक स्वर से उनकी मुरलिका स्वरित है, जिसको सुन सलिल-प्रवाह रुक जाता है,पवन नर्तन करने लगता है, दिशायें प्रफुल्ल हो जाती हैं और बृक्ष तक का पत्तापत्ता आनन्द से आन्दोलित होने लगता है। वे लोक ललाम हैं। अतएव कोटिकाम कमनीय हैं, वे सच्चिदानन्द हैं, इसलिये संसार सुखके सर्वस्व हैं, माधुर्य्यमय विभूतिके मूल हैं. एवं लोक-लीलाओंके लोको- त्तर आधार। उन्हीं की तद्गता प्रेमिका और आराधिका श्रीमती राधिका हैं। वे भी उन्हीं के समान लोकोत्तर मुन्दरी और अलौकिक शक्ति शालिनी हैं। उनका संयोगमय जीवन बड़ा ही भावमय, उदात्त और