पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२३६

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'काल और तुम' के साथ ने' का प्रयोग होना चाहिये था। सच्ची बात यह है कि और विभक्तियां तो आती भी हैं. परन्तु प्रथमा की 'ने' विभक्ति अवधी में आती ही नहीं । ह्रस्व का दीर्घ और दीर्घ का ह्रस्व होना दोनों भाषाओं का गुण है। उपरि लिखित पद्यों में बारू, 'संसारू, 'आना'.संसारा', 'ठांऊ' ह्रस्व से दीर्घ हो गये हैं और अंतरपट', धरति', 'बरुनि' 'पानि', सिंगार' आदि दीर्घ से ह्रस्व बन गये हैं। इन पद्यों में जो प्राकृत भाषा के शब्द आये हैं वे भी ध्यान देने योग्य हैं जैसे 'नाह', तुम्हे', हम्ह' 'पुहुप', मकु' इत्यादि। इनमें अवधी की जो विशेषतायें हैं उनको भी देखिये, 'पियारा'. 'बियाही' ठेठ अवधी भाषा के प्रयोग हैं। ब्रजभाषा में इनका रूप 'प्यारा' और 'ब्याही होगा। काकर , ओहो' 'जिउ', 'आपन' 'जस'. 'होइ'. 'हुत', 'गर', जाइ'. लेइ'. देई. 'पिउ', उवा', 'अथवा','उठाइ', 'उड़ाइ', 'उहै', 'भुइ'. बहुरा', रोइ', 'आइ', 'उन्ह', 'बानन्ह' 'अस', रो रोअं', ओपहं', 'हिरकाइ' इत्यादि भी ऐसे शब्द हैं. जिनमें अवधी अपने मुख्यरूप में पाई जाती है। जायसीने ब्रजभाषाा और खड़ी बोली के शब्दों का भी प्रयोग किया है, कहीं वे कुछ परिवर्तित हैं और कहीं अपने असली रूप में मिलते हैं --

बेधि रहा सागरै संसारा।
    भादौ विरह भयउ अति भारी
औ किँगरी कर गहेउ वियोगी ।
    तेइ मोहि पिय मो सौं हरा ।
लागेउ माघ परै अब पाला ।।
    ऐस जानि मन गरब न होई ।

'सगरौ व्रजभाषा का स्पष्ट प्रयोग है । 'सकल से 'सगर' पद बनता है। प्राकृत नियम के अनुसार क' का 'ग' हो जाता है और ब्रजभाषा और अवधी के नियमानुसार 'ल का 'र'। इसलिये अवधी में उसका पुल्लिङ्ग रूप 'सगर' होगा और स्त्रीलिंग रूप 'सगरी' । एक स्थान