पर जायसी लिखते भी हैं—'भई अहा सगरी दुनियाई।' इसलिये 'सगरौ' रूप जब होगा तब ब्रजभाषा ही में होगा। उसके नीचे की चौपाइयों में 'भयउ' और 'गहेउ' पद आया है ये दोनों शब्द भी ब्रजभाषा के 'भयो' और 'गह्यो' शब्दों के रूपान्तर हैं। 'तेहि मोहि पिय मो सौं हरा इस पद्य में दो शब्द ब्रजभाषा के हैं एक पिय' और दूसरा 'सौं'। 'पिय' शब्द ब्रजभाषा का और 'पिउ' शब्द अवधी का है। पदमावत में वैसेही दोनों का प्रयोग देखा जाता है जैसे 'प्रेम' शब्दको जायसी अपनी रचना में 'प्रेम' भी लिखते हैं और 'पेम' भी देखिये—किरिन करा भा प्रेम अँकरू और पेम सुनत मन भूल न राजा'। 'सौं' शब्द भी ब्रजभाषा से ही अवधीमें आया है। विद्वानों ने इस सौं को पश्चिमी अवधी के 'कर्ण' का चिन्ह माना है। पश्चिमी अवधी ब्रजभाषासे प्रभावित है इसलिये उसमें यह सौं शब्द पाया जाता है। ठेठ अवधी के 'कर्ण' का चिन्ह है 'से' और 'सन'। 'लागेउ माघ परे अब पाला' में 'लागेउ' का अवधी रूप होगा 'लागा'। यह 'लागेउ' ब्रजभाषा के लाग्यो का ही रूपान्तर है। 'ऐस जानि मन गरव न होई' में ब्रजभाषा का 'ऐसो', 'जैसो', तैसो' अवधी में 'अस', 'जस', 'तस' लिखा जाता है। वास्तव में 'ऐस' अवधी शब्द नहीं है। यह ब्रजभाषासे ही उसमें आया है और 'ऐसो' की एक मात्रा कम करके बना लिया गया है। इस शब्द का प्रयोग 'ऐस', 'ऐसे' आदि के रूप में पदमावत में बहुत अधिक पाया जाता है। और ऐसे ही 'कैसो' जैसो , तेसो के स्थान पर कैस, जैस, तैस इत्यादि भी। कुछ विद्वानों की सम्मति है कि ऐस, केस, जेस, तेस आदि भी अवधी ही के रूप हैं, किन्तु में इस विचार से सहमत नहीं हूं। सच बात यह है कि ब्रजभाषा के बहुत से शब्द अवधी में पाये जाते हैं, जिनका प्रयोग इन प्रेम-मार्गी कवियों ने स्वतंत्रता से किया है।
पदमावत में ब्रजभाषा शब्दों के अतिरिक्त अन्य प्रान्तिक भाषाओं के कुछ शब्द भी मिलते हैं। 'स्यों' बुंदेलखण्डी है और हिन्दीके 'सह' और से के स्थान पर लिखा जाता है। कविवर केशव दास ने इसका प्रयोग किया है। देखिये—अलिस्यों सरसीरुह राजत है।