पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२३८

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जायसी को भी इस शब्द का प्रयोग करते देखा जाता है। जैसे "रुण्ड मुण्ड अब टूटहिं स्यो बख्तर औ फूड", "विरिछ उपारि पेडि स्यों लेई। बंगला में 'आछे' है' के अर्थ में आता है। इस शब्द का प्रयोग जायसी को भी करते देखा जाता है। जैसे, ‘कवँल न आछै आपनि बारी', 'का निचिंत रे मानुष आपनि चीते आछुं। वे अरबी फारसी के शब्दों का प्रयोग भी इच्छानुसार करते देखे जाते हैं। कुछ ऐसे पद्य नीचे लिखे जाते हैं:-

अबूबकर सिद्दीक़ सयाने।
   पहले सिदिक दीन ओइ आने ।
पुनि सो उमरि खिताब सुहाये।
   भा जग अदल दीन जो आये।
सेरसाह देहली सुलतानू ।।
   चारो खण्ड तपै जस भानू ।
तहं लगि राज खरग करि लीन्हा।
   इसकंदर जुल करन जो कीन्हा।
नौसेरवाँ जो आदिल कहा ।
   साहि अदल सरि सोउ न अहा।

जिन शब्दों के नीचे रेखा खींची गई है वे फारसी और अरबी के दुर्बोध शब्द हैं। एक स्थान पर तो उन्होंने फारसी के सरतापा' को अपनी कविता में पूरी तरह खपा दिया है देखिये-

केस मेघावरि सिर ता पाई।

उनको सर्वसाधारण में अप्रचलित संस्कृत भाषा के तत्सम शब्दों का प्रयोग करते भी देखा जाता है। निम्न लिखित पद्यों के उन शब्दों को देखिये जिन के नीचे लकीर खींच दी गई है। सवै नास्ति वह अहथिर ऐस साज